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________________ आत्म-ज्जागरणके पपपर ऐसे बहिष्टि आत्म-विमुख प्राणीका चित्रण करते हुए कहा है कि यह मूर्ख प्रायः सोचा करता है "मैं सुखी दुखी मैं रंक राव । मेरे गृह षन मोधन प्रभाव ॥ मेरे सुत तिय में सबल-दोन । वेरूप सुभग मूरख प्रवीन !। तन उपजत अपनी उपज जान । तन नसत आपको नाश मान ॥ रागादि प्रकट ये दुःख दैन । तिनही को सेवत गिनत चैन || शुभ अशुभ बंधके फल मझार । रति अरति कर निजपद विसार ।।" -छहडाला इस प्रकार अपने स्वरूपको मूलनेवाला 'बहिरात्मा' मिध्यादृष्टि' अथवा 'अनात्मान' शब्दोंसे पुकारा जाता है । अनात्मीय पदार्थों में आत्मबुद्धि धारण करने की इस दृष्टिको अविद्या कहते हैं । अष्णरमरामायगमें बताया है "दहोऽहमिति या वृदिरविद्या सा प्रकीर्तिता। नाह देहश्चिदात्मेति बुद्धिर्विद्येति भण्यते ।।" मैं शरोर हूं' इस प्रकार शरीरमें एकत्वबुद्धि अविद्या कही गयी है । किन्तु 'मैं शारीर नहीं हूँ', 'चैतन्यमम आत्मा हूँ' यह बुद्धि विद्या है-- ऐसा अविद्यावान्, अज्ञानी, मोही प्राणी जितने भी प्रयत्न करता है, उतना हो वह अपनी आत्माको बंधन में डालकर दुःखकी वृद्धि करता है । यद्यपि शब्दोंझे वह मुक्ति के प्रति ममता दिखाता हुआ कल्याषाकी कामना करता है, किन्तु मपाम उसको प्रवृत्ति आत्मत्वकै लासकी ओर हो जाती है । मुक्तिके दिव्यमन्दिर में प्रवेश पाकर शाश्चतिक शान्तिको प्राप्त करनेकी कामना करनेवालेको साधनाके राज्चे मार्गमें लगना आवश्यक है । इसके लिए आत्माको पात्र बनानेको आवश्यकता है। इस पात्रताका उदय उस विमल तत्त्वज्ञानीको होता है, जो पारीर आदि अनात्मीय वस्तुओंसे शान-आनन्दमय आत्माका अपनी श्रद्धासे विश्लेपण करनेका सुनिश्पर करता है। इस पुपयनिश्चय अथमा श्रद्धाको सम्यक दर्शन (Right Belief) कहते हैं। स्व-परके विश्लेषण करनेकी इस शक्तिसे सम्पन्न जीवको अन्तरात्मा कहते हैं । उसको वृत्ति कमलके समान रहा करती है । जिस प्रकार जलके बी बमें सदा विद्यमान रहनेवाला कमल जल-राशिसे वस्तुतः अलिप्त रहता है, उसी प्रकार वह तत्त्वज्ञ भोग और विषयों के मध्यमें रहते हुए भी उनके प्रति आंतरिक आसक्ति नहीं धारण करता 1 मरे शब्दोंमें कमलके समान वह अलिप्त रहता है। जैन संस्कृतिमें जिनेन्द्र भगवान्के चरणोंके नीचे कमलोंकी रचनाका वर्णन पाया जाता है। कमलासनपर विराजमान जिनेन्द्र इस बातके प्रतीक है कि वे
SR No.090205
Book TitleJain Shasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages339
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Culture
File Size7 MB
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