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________________ कल्याणपथ ३२३ नहीं सुलझ सकती है । शहरी सोडा, साबुन आदि द्रश्योंमे वस्त्रको मलिनता दूर की जाती है, किन्तु हृदयकी मलिनताको घोने के लिए करुणाके 'अमृत-सर में गहरी डुबको लगाए बिना अन्य उपाय नहीं है। यदि इनके हृदय में बापूके प्रति मपता और अद्धाका भाव है, तो क्यों नहीं उनके करुणा प्रसारके पुण्य कार्यमें आगे आते है ? कलकत्तकै कालोमन्दिरमें देषीके आगे रक्सको वंतरिणी देखकर गाँघोजी की आत्मा आकुलित हो गई थी, और उनका करुणापूर्ण अन्तःकरण रो पड़ा था । अपनी अन्तबदनाको व्यक्त करते हुए बापू अपनी आत्मकथाम लिखते हैं कि "'जब हम मन्दिर में पहुंचे, तब खूनकी बहती हुई नदीसे हमारा स्वागत हुआ। यह दृश्य में नहीं देख सका 1 मैं बेचन और म्याकुल हो गया । मैं उस दृश्यको भी नहीं विस्मृत कर सकता हूं। मुझे बुद्धदेष को कथा याद आई। किन्तु मुझे वह कार्य मेरी सामर्थ्य के परे प्रतीत हुआ । मेरे विचार जो पहले थे, वे आज भी उसी प्रकार है। मेरी अनवरत यही प्रार्थना है, कि इस भूतल पर ऐसी महान् आत्माका नर अथवा नारोके रूपमें आविर्भाव हो, जो मन्दिरको हिसा बन्द करके उसे पवित्र कर सके । यह बड़ी विचित्र बात है, कि इतना विज्ञ, बुद्धिमात्, त्यागी तथा भावुक वंग-प्रान्त इरा बलिदानको सहन करता है ? धर्म नाम पर कालीके समक्ष किया जानेवाला भीषण जीववध देखकर मेरे हृदयमें वंगाकिनो जीवनको यातले की सनापूस नई "महाजीफे पूर्वोक्त उद्गारोंसे यह स्पष्ट है कि वे जीवघ और खासकर धर्मक नाम पर बलिदान देखकर वर्णनातीत ज्ययाको अनुभव करते थे, किन्तु देशव परतंत्र होनेके कारण वे अपनी सीमित-सामर्यसे भी अपरिचित न थे, इसीसे वे अपने परमाराध्य परमेश्वर से प्रार्थना कर समर्थ करणाके प्रसारमें उद्यत आत्माके आविर्भावकी भाकांक्षा करते थे । सौभाग्यकी बात है, कि आजका शासन सूत्र 1. "We passed on to the temple. Ile were greeted by rivers of blood. I could st bcar to stand there. I was exasperated and restless. I have never forgotten that sight ...... I thought of the story o! BUDDHA but I also saw thal the task was beyond my capacity: 1 hald today the same opuion as I held then, it is my constant prayer that there may be born on earth some great spirit' man or wernan, who will......purify the temple. How is it that Bengal with all iis kuowledge, irtelligence sacrifice and emotion tolerates this salighter: Tlie terrible sacrifice offered to Kali in the name of religion enhanced my desire to know Bengal life. -Vide-Gandhiji's Autobiography,
SR No.090205
Book TitleJain Shasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages339
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Culture
File Size7 MB
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