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________________ विश्वसमस्याएँ और जैनधर्म ३०७ अपने कामको जानो और उसे पूरा करो। अध्यात्मवादी यह कभी नहीं कहता कि अपने कर्तव्यपालन में प्रमाद करो । उसका यह कथन अवश्य है, कि शरीर के साथ आत्मा की भी सुधि लेते रहो। स्वामी (आत्मा) की चिन्ता न कर सेवक (शरीर) की गुलामी में ही अपनी शक्तिका व्यय करना उचित नहीं है। अधिक कार्यव्यस्त व्यक्ति से शान्त भावसे पूछ ३० ज करोगे ? शान्ति पूर्वक जीवन क्यों नहीं बिताते ? तो यह कहेगा, मुझे इसमें ही आनन्द मालूम पड़ता है। हाँ, यदि वह व्यक्ति अन्तःनिरीक्षण ( Introspection ) का अम्पास रखे, तो वह यह स्वीकार करेगा, कि कोल्हू के बैल के समान जीवन विवेकी मानवके लिए गौरवकी वस्तु नहीं कहा जा सकता । गोजीने अमेरिकाको एक महत्त्वपूर्ण सन्देश दिया था - "वह (अमेरिका) को उसके सिहासन या सख्तसे हटाकर ईश्वर के लिए थोड़ी जगह खाली करे ।" गान्धीजीने यह भी कहा, "मेरा खयाल है कि अमेरिकाका भविष्य उजला है । लेकिन अगर वह उनकी ही पूजा करता रहा, तो उसका भविष्य काला है ।" उनका यह वाक्य कितना सुन्दर है, "लोग चाहे जो कहें, धन आखिर तक किसीका सगा नहीं रहा । वह हमेशा बेबफा ( बेईमान ) दोस्त साबित हुआ है" - (हरिजन सेवक १०-११-४६, ३९९ ) । विश्वशान्ति स्थापन के विषय में गंभीर विचार करते हुए अरिस्टर चंपलराजीने अपनी पुस्तक "The Change of Heart" (P. 57 ) में लिखा है, कि वास्तविक शान्तिकी कामना करनेवाले जिनशासनभक्त तथा अन्य अल्प व्यक्ति है । शान्तिभंग करनेवाले अपरिमित संख्या वाले हैं उनमे से एक वर्ग (१) उन धर्मान्धों (Fanatics) का है, जो सोचते हैं कि अपने रक्तपातपूर्ण कार्यों द्वारा अपने ईश्वरको प्रसन्नताको प्राप्त करेंगे, और ईश्वर से क्षमा भी प्राप्त कर लेंगे। उस ईश्वर से बड़े-बड़े पुरस्कार पाने की इन भक्तों को आशा है । साम्प्रदायिक विद्वेषप्रज्वलित करनेवाले तथा अमानुषिक कृत्यों द्वारा इस भूतलपर नारकीय दृश्य उपस्थित करनेवाले इन मजहवी दीवानों द्वारा विश्व में यथार्थ ऐक्य तथा शान्तिका दर्शन दुर्लभ बन जाता है 1 इनके सिवाय दूसरा वर्ग ( २ ) शिकारीको भावना ( Hunter 's Spirit ) के नशेमें चूर है। वे दूसरों को संपत्ति मा भूमि-रक्षण में सहायता इसी बाधारपर देते हैं, कि तुम यह स्वीकार करो कि बल हो सच्चा है (Might in right) | तुम उनको बलशाली स्वीकार करो । उनको धारणा है कि संसारमें दुर्बल मनुष्योंका संहार करके ही वे योग्य बनते हैं । शान्ति के उपासकोंकी संख्या या प्रभाव इतना अल्प है, कि वे आजके कूटनीतिशोके छल-प्रपंचके विरुद्ध कुछ भी महत्वपूर्ण कार्य नहीं कर सकते । पन
SR No.090205
Book TitleJain Shasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages339
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Culture
File Size7 MB
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