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________________ पराक्रमके प्रांगण में २४१ में हुआ होगा जब कि प्रत्याप्त जनगन्यकार पंडितप्रदर टोडरमलजी, जयपुरके तत्कालीन नरेशके कोपनश हायीके पैरों के नीचे दरवाकर मार डाले गये थे । इस प्रकार आत्माकी अमरतापर विश्वास कर सत्य और वीतराग धर्म के लिए परम प्रिय प्राणोंका परित्याग करनेवाले जन धीरोंका पवित्र नाम धामिक इतिहास में सदा अमर रहेगा । दयाके क्षेत्रमें जैनियों का महत्वपूर्ण स्थान है। आज जब कि जड़वादके प्रभाववश लोग मांसाहार आदिको और बढ़ते जा रहें हैं और असंयमपूर्ण प्रवृत्ति अवमान हो रही है, तब जीवोंकी रक्षा तथा संयमपूर्ण साधना द्वारा मनुष्य भबको सफल करने वाले पुथ्य पुरुषों से जैन समाज आज भी संपन्न है। श्रेष्ठ महिमाके मन, वचन, काय, कृत, कारित, अनुमोदनापूर्वक पालक प्रातःस्मरणीय पाग्निचक्रवर्ती आचार्य श्रीशान्तिसागर महाराज सदश वीतराग, परमशान्त दिगम्बर जैन श्वमणोंका सद्भाव दयाके क्षेत्रमें भी अन संस्कृतिको गौरवान्वित करता है। जैनश्चमणोंके दिगम्बरनके गर्भ मे उत्कृष्ट दयाका पवित्र भाव विद्यमान रहता है । एक विद्वानने लिखा है-''जैन मुनिकी वीरता शान्तिपूर्ण है प्रत्येक शोर्यसम्पन्न कार्यके पूर्व में प्रबल इच्छाका सद्भाष पाया जाता है, इस दृष्टिसे इसे क्रियाशील वीरता भी कहते है " संग्राम-भूमिमें जो पराक्रम प्रदर्शित किया जाता है वह दीरताके नामसे विश्व विख्यात है। इस क्षेत्र में भी जनसमाजका महत्वपुर्ण स्थान रहा है। गाधारणतया जैन-तत्त्वज्ञानके शिक्षणसे अपरिचित व्यक्ति यह भ्रान्त धारणा बना लेते हैं कि कहाँ अहिंसाका तत्त्वज्ञान और कहाँ युद्धभूमिमै पराक्रम ? रोनोंमें प्रकाश अंधकार जैसा विरोष है। किन्तु वे मह नहीं जानते कि जैनधर्म में गृहम्पके लिए जो अहिंसाकी मर्यादा वांधी गई है उसके अनुसार वह निरर्थक प्राणिवध न करता हुआ पाय और कतंत्र्यपालन निमिस अस्य-शस्त्रका संचालन भी करता है । इस विषय में भारतीय इतिहाससे प्राप्त सामग्री यह सिद्ध करती कि पराक्रमके प्रांगणमे महावीरके माराधक कभी भी पीछे नहीं रहे हैं । रामबहानुर महामहोपाध्याय पं. गौरीशंकर हीराचंड प्रोमाने 'राजपूताने के वीर' की भूमिकामें लिखा है-"वीरता किसी जातिविशेषको संपत्ति नहीं है । गारत में प्रत्येक जातिमे वीर पुरुष हुए है। राजपूताना सासे धीरस्थल रहा है । गामि दया प्रधान होते हुए भी वे लोग अन्य जातियोंसे पीछे नहीं रहे हैं । पाताप्रियांसे राजस्थानमें मंत्री आदि उच्च पदोंपर बहुधा जैनी रहे हैं, उन्होंने बाकी आपत्तिके समय महान सेवाएं की हैं, जिनका वर्णन इतिहास में मिलता ।' भारतीय इतिहास-प्रसिद्ध सम्राट बिम्बसार-णिक जैनयमका आधार
SR No.090205
Book TitleJain Shasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages339
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Culture
File Size7 MB
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