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________________ जैनशासन विल्याप्त वैज्ञानिक सर ओलिवर लोजने अपने गम्भीर प्रयोगों द्वारा मरणके उपरान्त मात्माके अस्तित्वको प्रमाणित किया है। हरदूलियन (Terrulian) नामक यूरोपियन पण्डित लिखता है कि आरमा एक मौलिक खण्ड-बिहीन (Simpic and indivisible) वस्तु है । अतएव उसे अविनाशी होना चाहिए। कारण अखण्ड तथा मूलभूत असंयुक्त पदार्थ बिनाया-विहीन होता है । आत्मामें जो शान उत्पन्न होता है, वह खण्ड-खण्ड रूपन होकर अखण्ड समष्टि रूपमें पाया जाता है। उदाहरणार्थ हम कहते हैं 'आम एक मधुर फल है' इस शब्दमालिकामें परस्परमें भेद होते हुए भी हमें 'मा' 'म' 'ए' 'क' आदिका पृथक पृषक बोध न होकर समष्टि रूपसे थाम वस्तुका परिमान होता है । यह ज्ञान भौतिक मस्तिष्कसे उत्पन्न नही होता । इस ज्ञानकी पुनरावृत्ति भी की जा सकती है। इस कारण, जड़तत्त्वसे भिन्न (linmaterial) तत्वका सद्भाव मानना चाहिए । मकवानल, शापन हापर, लेसिंग, हर्डर आदि पश्चिम के चिन्तकोंने आत्माको मौलिकताको एवं अविनाशिताको स्वीकार किया है । अमूर्तिक आत्माका विचार अनुभवका विषय है, वह भौतिक विज्ञानको परिधिके बाहरकी वस्तु है 1 मनोवैज्ञानिक शोधनमण्डल (Psychical Research Society) ने आत्माके अस्तित्वको स्वीकार किया है। महाकवि कालिदास अपने अभिज्ञानशाकुन्तलमें लिखते हैं-कभी कभी सुखी प्राणी भी मनोरम पदार्थोंका दर्शन, मधुर शब्दोंका श्रवण करते हुए भी अत्यन्त उत्कंठित हो जाता है। इससे प्रतीत होता है कि वह अन्तःकरणमें अंकित पूर्वअन्मक प्रेमको स्मरण करता है ।" कविका भार यह है कि अनुकल तथा प्रिय वातावरण में विद्य मान मुखी व्यक्तिको मनोवृत्ति में परिवर्तन होनेका कारण जन्मान्तरके संस्कारोंका प्रभाव है। 1. Hindustan Review, 2, A Scientific Interpretation of Christianity by Dr. Elizabeth Fraser. p. 20. 3. "The investigations of the Psychical Research Society have conclusively established the existence of the soul and in some cases even the truth of the theory of transmigration"-Key of Knowledge', ४. "रम्याणि वीक्ष्य मधुरांश्च निशम्य शब्दान् पर्युस्सुकीमवति यत्सुखितोऽपि जन्तुः । सच्चेतसा स्मरसि नूनमबोधपूर्वम् भावस्पिराणि जन्मान्तरसौदानि ॥"-अंक ५, पृ० १४० ।
SR No.090205
Book TitleJain Shasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages339
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Culture
File Size7 MB
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