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________________ २२० जैनशासन माखोकी लड़ाईमें देखिए "इक हरिकारा दौड़ात आयो । जा आल्हाको करी जुहार ॥" 'सिरसा समर' में मलसामने धोरसींगसे जुहार की है "सिंह की बैठक क्षत्र 'बैठे। सबके बीच वीर मलिखान । साथी अपने ताहर छोड़े। अकिले गयो धीर सरदार ।। करो जुहार जाय समुहे पर । ऊँची चौफ्री दई इराय । देखि पराक्रम नर पलिखेको धीरज मनमें गए सरमाय । करि जुहार धीरज तब चलिये । पहुंचे जहाँ वीर चौहान ।" इस प्रकार बहुतमे प्रमाण उपस्थित कियं जा सकते हैं, जिनसे जुहार शब्दका व्यापक प्रचार सार्वजनिक रूपसे होता हुआ ज्ञात होता है । शिवाजी महाराज ने अपने एक पत्रा भा इसका प्रयोग किया है । 'भोर किल्ले रोहिडा प्रति राजश्री शिवाजी राजे जोहार ।" (मराठी वाङमयमाला-पदरर्धनकृत) जुहार शनकी व्यापकतापर गहरा प्रकाश रहीम कविफ इस पद्य द्वारा पड़ता है "सब कोई सबसों करें राम जुहार' सलाम । हित रहीम जब जानिये जा दिन अटके काम ।।।" इस प्रकार भारतीय जीवन के साहित्यपर सूक्ष्म दृष्टि डालमेसे जैनत्वक व्यापक प्रभावको ज्ञापित करनपाली विपुल सामग्री प्रकाश आमे बिना न रहेगी। भारत में ही क्यों बाहरी देशों में भी ऐसी सामग्री मिलेगी । अमेरिकाका पर्यटन करनेवाले एक प्रमुख भारतीय विद्वान्ने हमसे कहा था कि वहां भी जैन संस्कृति के चिल्ल विद्यमान हैं। जिन लेखकोंने वैदिक दृष्टिकोशको लेकर प्रचारकी भावनासे उन स्थलोंका निरीक्षण किया उन्होंने अपने संप्रदायके मोहवश जैन संस्कृति विषयक मस्यको प्रगट करने का साहस नहीं दिखाया। माशा है अन्य न्यायशील विद्वान् भत्रिध्यमें उदार दृष्टिो काम लेंगे। १. 'जहार' को भ्रांतियश जौलर अतका द्योतक कोई-कोई मोबने है, किन्तु उपरोक्त विवेचन द्वारा इसका वैज्ञानिक अर्थ स्पष्ट होता है। जैन संस्कृतिके अनुरूप भाव होने के कारण ही जैन जगत्में अभिवादनके रुपम इसका प्रचार है । अतः 'जौहर'के परिवर्तित रूपमें जुहारको मानना असम्यक है।
SR No.090205
Book TitleJain Shasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages339
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Culture
File Size7 MB
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