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इतिहासके प्रकाशमें
२१९ आलंकारिक भाषामें २४ महापुरुष स्वीकार किये गये है।" जनेतर स्रोतों द्वारा जैनधर्म के चौबीस महापुरुयोंकी मान्यताका समर्थन यह सूचित करता है कि जैन मान्यता सत्यक आधारपर प्रतिष्ठित है।
इसी प्रकार जैनियों में प्रचलित 'जुहार' शम्द का भारतमें व्यापक प्रचार जैन संस्कृति के प्रभावको स्पष्ट करता है । 'ज' मुगादि पुरुष भगवान् वृषभदेव के प्रामका योतक है, 'हा' का अर्थ है, जिनके द्वारा सर्व संकटोका हरण होता है
और 'र' का भाव है, जो सर्व जीवधारियोंके रक्षक हैं इस प्रकार जिनेन्द्र गुण वर्णन रूप 'जुहार' शब्दका भाव है । 'जुहार' शन्दका व्यवहार जैन बंधु परस्पर अभिवादन करते है। तुलसीदासजोकी रामायण में 'जुहार' शब्दका अनेक बार उपयोग किया गया है। अयोध्याकाण्डमे लिखा है कि चित्रकूटकी ओर जब रामचन्द्र जो गये हैं, तब योग्य नियास भूमि को देखने समय पुरवासियोंने रघुनाथजीसे जमार की है। ''ले रघुनाथहि ठाउँ देखावा । कहेउ राम सब भांति सुहावा । पुरजन करि जोहार धर आए । धुवर संध्या व.रम सिधाए ।। ८९-३॥"
पुरवासियोंके द्वारा इस शब्दका । इसकी नमसन को शक्ति करता है।
भीलोंने भी रामचन्द्रजीरो जुहारकी है और अपनी भेंट अपित की है"करहिं जोहार भेंट धरि भागे। प्रभुहिं विलोकहि अति अनुरागे । प्रभुहि जोहारि बहोरि बहोरी । वचन विनीत कहहिं कर जोरी ।।१३५।।''
अयोध्यावासियोंन रामबनधासके पश्चात् 'भरतजीके अयोध्या आगमन पर भी इस शब्द का प्रयोग किया है"पुरजन मिलहि ने कहहि कछु, गहि जोहारहि जाहिं । भरत कुसल पूछि न सकहिं, भय विषाद मन मांहि ।। १५९ ।।" इत्यादि प्रमाण पाये जाते है।
साल्हाखंड भी धीर क्षत्रिय तथा राजा लोग परस्परमें 'जुहार' मारा अभिवादन करते हुए पाए जाते है।
'पपिनीहरण' अध्याय में पृथ्वीराज ओर जयचंदमें 'जुहार' गन्दका प्रयोग आया है
"आगे आगे चंद भाट भए पाछे चले पिथौरा राय । भारी वैठक कनउजियाको भरमा भूत लगो दरबार ।।
जाइ पिथौरा दाखिल हो गए । दोउ राजनमें भई जुहार ॥४०॥" 1. Vide-Rishabhadeva, the Four.der of Jainism p. 58, also Key
of Knowledge.