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________________ महारा २०२ जैनशासन नरमेधयज्ञका नाम रखकर मुनिओंकी आवासभूमिको हड्डी, मांस आदि घृणित पदार्थोंसे पूर्ण कराकर उत्सने उसमें आग लगवा दी, जिसके भीषण एवं दुर्गन्धयुक्त धुंएसे साधु लोगोको दम घुटने लगी। बलिने अवर्णनीय उपाय आरम्भ करा दिया। उसने सोचा था, इस यज्ञकी ओटमै सम्पूर्ण मुनिसंघको स्वाहा करके सदाके लिये निश्चिन्त हो जाऊँगा । इधर यह पैशाचिक जघन्य लीला हो रही थी, उधर मिथिलाम एक महान योगी मुनिराजने अपने दिव्य ज्ञानस आकाशमें श्रवण नक्षत्रको कम्पित देख हस्तिनागपुरमें मुनिसंघके महान उपसगंको जानकर बहुत दुःन प्रकट किया। उनके समीपवर्ती पुष्पदन्त क्षुल्लकने सर्व वृत्तान्त ज्ञात कर यह जाना कि विक्रिया ऋद्धि नामक महान योग-शा.क्तको धारण करनबाले महामुनि विष्णुकुमारजीके प्रयत्नसे ही यह मंकट टल सकता है, अन्यथा नहीं । ___ पुष्पदन्त क्षुल्लकले विष्णुकुमार मुनिराजके पास जाकर सम्पूर्ण वृत्तान्त सुनाया । विपत्ति-निधारणनिमित्त आध्यात्मिक सिद्धियों का उपयोग करते हुए के अपने भाई पद्मरायके राज्यमें पहुंचे, जहाँ बालने मरनलिका पाखर पराया था . पपरायको भरते हुए उन्होंने कहा-'पपराय, किमाराधं भवता राज्यवतिमा' तुमने यह क्या कार्य मचा रखा है । पद्म रायने अपनी असमर्थता बसत हुए निवेदन किया कि एक सप्ताह पर्यन्त राज्यपर मेरा कोई भी अधिकार नहीं है | इस प्रसंग पर हरिवंश-पुराणकार कहते हैं 'पद्मस्ततो नतः प्राह नाथ, राज्यं मया बलेः । , सप्ताहावधिकं दत्तं नाधिकारोऽधुनात्र मे ।।"-२०.४० । विष्णुकुमार मुनिराजने यज्ञ और दान देनमें तत्पर बलिको देख अपने लिये केवल तीन पांव भूमि मांगी। स्वीकृति प्राप्त कर विक्रिया अधिक प्रभावसे विष्णुकुमारने अपने दो पावोंको मेह तथा मानुषोत्तर पर्वत पति विस्तृत करके तीसरे पैरके योग्य भूमि मांगी। यह लोकोत्तर प्रभाव देखकर बलि भवड़ाया। उसने क्षमा मांगी और उपसर्ग दूर किया। विष्णुकुमार मुनिराजने श्रावणी पूणिमाके प्रभाप्त में साधु ओंका उपसर्ग दूर किया । बलिको अपने पास कर्मके कारण निन्दा प्राप्त हुई तथा यह देशके बाहर कर दिया गया। आचार्य जिनसेम कहते हैं "उपसर्ग विनाश्याशु बलि बद्ध्वा सुरास्तदा । विनिगृह्य दुरात्मानं देशाद् दूरं निराकरन् ।।" हरिवंशपु० २०-६० १. हरिवंशपुराण सर्ग २०, श्लोक ३२ ।
SR No.090205
Book TitleJain Shasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages339
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Culture
File Size7 MB
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