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________________ साधकके पर्व २०१ यहाँ राजमन्त्री जिनधर्म विद्वेषी हैं मतः मौनवृत्ति रखना उचित है। उनसे वाद-विवाद नहीं करना चाहिये कारण इससे हानिकी सम्भावना है । 1 मन्त्रियोंने श्रुतसागर क्षुल्लक के समक्ष पवित्र धर्मपर झूठा आक्षेप लगाया तब क्षुल्लक महाराजने अपने पांडित्यपूर्ण उत्तरसे उनको पराजित किया । मन्त्री लोगोंने अपनेको अपमानित अनुभवकर संपके समस्त साधुयोंपर उपद्रव करनेको सोची । श्रुतसागर क्षुल्लक मन्त्रियों के वार्तालाप तथा उनकी पराजयका हाल मुनकर अकम्पनाचार्य ने निश्चय किया कि आज संघपर आपत्ति आए बिना न रहेगी, अतः उन्होंने मध्याह्नमें विवाद के स्थलपर हो श्रुतसागर क्षुल्लकको जाकर ध्यान करनेका आदेश दिया। श्रुतसागरजी बड़े ज्ञानी तथा योगी थे। वे आत्म ध्यान में मग्न थे। नीरव रात्रिमें उक्त मत्रियोंने तलवार से उनपर आक्रमण किया किन्तु क्षुल्लकजी के तपःप्रभाव से मन्त्री लोग कीलित हो गये । प्रभात कालीन प्रकाशने उन पापियोंका चरित्र जगत् के समक्ष प्रकट कर दिया। राजाको जन्न मन्त्रियोंकी इस जघन्य वृत्तिका पता चला तब उसने मन्त्रियों को उचित दंड दे तिरस्कारपूर्वक राज्यसे निर्वासित कर दिया । अनन्तर बलि आदि पर्यटन करते हुए हस्तिनागपुर पहुंखे । अपनी योग्यतासे चहकि जैन राजा पद्मरायको उन्होंने शोध ही प्रभावित किया । पद्मरायको अपने प्रतिद्वन्दी सिंहबल नरेशकी सदा भीति रहा करतो यो । बलिने अपनी कूटनीतिसेसिबलको शीघ्र ही बन्धन बद्ध कर पद्म रायको चिन्तामुक्त कर दिया । इस पर अत्यन्त प्रसन्न हो पद्मराय बलिसे बोले, मन्त्री तुम्हें जो कुछ भी चाहिये, भाँगी। मैं उसकी पूर्ति करूंगा । बलिने कहा- महाराज, जब हमें आवश्यकता होगी, तब हम आपसे चरकी याचना करेंगे। अभी कुछ नहीं चाहिये । राजाने यह स्वीकार किया । कुछ समय के अनन्तर अकंपनाचार्य पूर्वोक्त सात सौ तपस्वियों सहित बिहार करते हुए हस्तिनागपुर में वर्षाकाल व्यतीत करमेके उद्देश्यसे पधारे। जैमनरेश पद्मरायके अधीन रहने वाली जिनेन्द्रभक्त जनताने साधुओंके शुभागमनपर अधार आनन्द व्यक्त किया । बलि और उनके सहयोगियोंने सोचा, इस अवसरपर इन साधुओं से बदला लेना उचित है, अभ्यथा जैन नरेशके पास अब अपना अस्तित्व न रहेगा । पुराने वरको स्मरण कराकर बलिने पचरायसे सात दिनका राज्य मांगा । मन्त्रियोंके दुर्भावको बिना जाने राजने एक सप्ताह के लिए बलिको राजा का पद प्रदान कर दिया। अब तो अमात्य बलि राजा बन गया। साधुओंके संहार निमिल उसने मशका जाल रचा ।
SR No.090205
Book TitleJain Shasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages339
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Culture
File Size7 MB
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