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________________ आत्मजागृतिके साधन-तीर्थस्थल १९३ "Beyond controversy this is the most supcrb of all the teinples in India and there is not an edificc besides the Tajmahal, that can approach it." -भारतवर्षके मंदिरों में यह श्रेष्ठ है यह बात निर्विवाद है । साजमहलके सिवाय कोई और भवन उसको ससा ही कर सHET, बिलश मनवा! आदिनाथका मंदिर विक्रम संवत् १०८८ (ईस्वी सन् २०३१) में बनवाया था। नेमिनाय भगवान्का मनोज्ञ मंदिर तेजपाल वस्तुपाल नामक राजमंत्रियोंने बमवाया था। विक्रम संवत् १२८७ में इस प्रख्यात मंदिरका निर्माण हुआ था। करोड़ों रुपयोंका व्यप कर इस अनुपम मन्दिरकी रचना की गई है। शिल्पशास्त्रके अधिकारी विद्वान् फग्यूसन महाशय लिखते है'-"इस मंदिरमें, जो कि संगमर्मरका बना हुआ है, अत्यन्त परिश्रमी हिन्दुओंकी संकीसे फीते जैसी दारीकीके साथ, ऐसो मनोहर आकृतियां बनाई गई है कि उनकी नकल कागजपर उतारने में बहुत समय लगानेपर भी मैं समर्थ नहीं हो सका ।" पार्नल टॉडने मन्दिरके गुम्बज को देख चकित होकर लिखा है कि "इसका चित्र तैयार करनेमें लेखनी थक जाती है । अत्यन्त श्रमशील चित्रकारकी फलम को भी इसमें महान् श्रम पड़ेगा । इन मन्दिरोंमें जनधर्म की कथाएँ चित्रित की गई है। व्यापार, समुद्रयात्रा, रणक्षेत्र आदिके भी चित्र विद्यमान है ।" मन्दिरों के सौन्दर्यने कर्नल टॉडके अंतःकरणपर इतना प्रभाव डाल रखा था कि श्रीमती हंटर म्लेर नामकी महिलाने मन्दिरके गुम्बजका पित्र जब दौड साहबको विलायत में दिखाया तो उससे आकर्षित हो उन्होंने 'पश्चिम भारतकी यात्रा' नामको अंग्रेजी पुस्तक उक्त महिलाको समर्पण को और उस महिलासे कहा-"हर्ष है कि तुम आबू गई हो नहीं, किन्तु आबू को इंग्लण्डमें ले आई हो।" देवगढ़ बुन्देलखण्डके जाखलोन स्टेशनसे लगभग १० मोलको दूरोपर अत्यन्त कलापूर्ण स्थान है। देवपति और खेपति बन्धुनोंने अपनी विशुद्ध भक्तिके प्रसाद से विपुल दन्य प्राप्त किया और दृष्यका समय करते हुए बगणित कलामय जिनेन्द्रमूर्तियाँ देवगढ़में बनवाई, जिनके सौंदर्य दर्शनसे नयन सफल हो जाते है। वह श्रवणबेलगोलाकी लधुआवृत्ति सदृश प्रतीत होता है । सांचीको प्रापोन भव्य बौद्ध सामग्री जिस प्रकार हृदयपर अमिट प्रभाव सलती है उसो प्रकार प्रेक्षक मो देवगढ़की अनुपम उत्कृष्ट कलापूर्ण सामग्रीसे प्रभावित तथा मानंदित हुए बिना नहीं रह सकता । यहाँ हजारों भूतियोंको देस वात्मामें वीतरामताका अपूर्व Picturesque Uustrations of Ancient Archietcture in Hindus tan by Fergusson, २. आबू जैन मन्दिरोंके निर्माता, १० ६५, ६९ ।
SR No.090205
Book TitleJain Shasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages339
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Culture
File Size7 MB
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