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________________ कर्मसिद्धान्त परमात्मा बन जाता है। जो जीव आत्म-साधनाके मार्गमें नहीं पलता, वह प्रगति-हीन जीव सदा दुःखोंका भार उठाया करता है । आचार्य नेमिचन्द्र सिद्धासचक्रपाने कितना सुन्दर उदाहरण देकर इस विषयको समझाया है-- "जह भारबहो परिसो वहइ भरं गेहिऊण कावडियं । एमेव वहद जीवो कम्मभरं कायकावडियं ॥२०१॥" -गोम्मटसार-ओवकाण्ड । __ जिस प्रकार एक बोना होनेवाला व्यक्ति कांबड़को लेकर बोझा ढोता है, उसी प्रकार यह संसारी जीव शरीररूपी कौवड़ द्वारा कर्मभारको होता है। यह कर्मबन्धन पर्यायको दृष्टि से अनादि नहीं है । तत्त्वार्थसूत्रकारने "अनादि सम्बन्धे ” (२०४१) सूत्र द्वारा यह बता दिया है कि कर्म-सन्ततिकी अपेक्षा अनादि सम्बन्ध होते हुए भी पर्यायको दृष्टिसे वह सादि सम्बन्धवाला है । बीज और वायके सम्बन्धपर दृष्टि डालें तो परम्पराको दृष्टिसे उनका कार्यकारणभाव खनादि होगा । जैसे अपने सामने लगे हुए नीमके वृक्षका कारण हम उसके कोज- . को कहेंगे । यदि हमारी दृष्टि अपने नोमके माह तक ही सीमित है तो हम उसे बीजसे उत्पन्न कह सादिसम्बन्ध सूचित करेंगे। किन्तु इस वृक्ष के उत्पादक बीजके जनक अन्य वृक्ष और उसके कारण अन्य बीज मादिकी परम्परापर दृष्टि राले तो इस अपेक्षासे इस सम्बन्ध को अनादि मानना होगा। किन्हीं दानिकोंको यह भ्रम हो गया है कि जो अनादि है, उसे अनन्त होना ही चाहिये। वस्तुस्थिति ऐसी नहीं है अनादि वस्तु अनन्त हो, न भी हो, यदि विरोधी कारण आ जावे तो अनादिकालीन सम्बन्ध की भी बड़ उखाड़ी जा सकती है। तस्वार्थसारमें लिखा है "दग्धे बोजे यथात्यन्तं प्रादुर्भवति नांकुरः । कर्मबीजे तथा दग्धे न रोहति भवांकुरः ॥" -श्लोक ७, पृ० ५८ । जैसे बीजके जल जानेपर पुनः नवीन वृक्ष में निमित्त बनने वाला अंकुर नहीं उत्पन्न होता, उसी प्रकार कर्मदीजके भस्म होनेपर भवांकुर उत्पन्न नहीं होता। आत्मा और कर्मका अनादि सम्बन्ध मानना तर्कसिद्ध है । यदि सादिसम्बन्ध मानें तो अनेक आपत्तियां उपस्थित होंगी। इस विषयमें निम्न प्रकारका विधार करना उचित होता है । आस्मा फर्मोके अघोन है, इसीलिये कोई दरिद्र और कोई श्रीमान् पाया जाता है । पंचाम्यायोमें कहा है"एको दरिद्र एको हि श्रीमानिति च कर्मणः" उत्त० श्लो०५०।
SR No.090205
Book TitleJain Shasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages339
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Culture
File Size7 MB
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