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________________ समन्वयका मार्ग - स्याद्वाद १४७ एक आख्यायिका क्षणिकैकान्स पक्षको अव्यावहारिकताको स्पष्ट करती है । एक ग्वाला क्षणिक तत्त्वके एकांत भक्त पंडितजीके पास गाय चरानेका पैसा माँगने प्रथम बार पहुँचा । अपने क्षणिक विज्ञानकी धूनमें मग्न हो पंडितजीरे को यह कहकर वापिस लौटा दिया कि जिसकी गाय थी और जो ले गया था, वे दोनों अग्र नहीं हैं, बदल गये । इसलिए कौन और किसे पैसा दे ! दुखी हो, ग्वाला किसी स्याद्वादी के पास पहुँचा और उसके सुझावानुसार जब दूसरे दिन पंडितजी के यहाँ गाय न पहुँची, तब वे स्वाले के पास पहुँच गायके विषय में पूछने लगे 1 अनेकांत विद्यावाले बंधूने उसे मार्ग बता हो दिया था इसलिए उसने कहा - "महाराज गाय देने वाला लेने वाला तथा गाय, राभी हो बदल गये, इसलिए आप मुझसे क्या मांगते हैं ?" पंडितजी चक्करमें पड़ गये । व्यावहारिक जीवनने भ्रमांषकार दूर कर दिया, इसलिए उन्होंने कहा - "गाव सर्वथा नहीं बदली है, परिवर्तन होते हुए भी उसमें अविनाशोपना भी हैं" इस तरह ग्वालेका वेतन देकर उनका विशेष दूर हो गया। इससे स्पष्ट होता है कि एकांत पक्ष आधारपर लौकिक जीवनयात्रा नहीं बन सकती । कोई मौद्धदर्शनको मान्यता के विपरीत वस्तुको एकांत रूपसे नित्य मानते हैं । इस संबंध में समन्तभद्राचार्य 'युक्त्यनुशासन' में लिखते हैं "भावेषु नित्येषु विकारहानेनं कारकव्यापृतकार्ययुक्तिः । न बन्धभोगौ न च तद्विमोक्षः समन्तदोषं मतमन्यदीयम् ॥ ८ ॥ " पदार्थों नित्य माननेपर विक्रिया-परिवर्तनका अभाव होगा और परिवर्तन न होनेपर कारणों का प्रयोग करना अप्रयोजनीय ठहरेगा। इसलिए कार्य भी नहीं होगा । बंघ, भोग तथा मोक्षका भी प्रभाव होगा। इस प्रकार सर्वथा नित्यत्व माननेवालों का पक्ष समंतदोष- दोषपूर्ण होता है। एकांत नित्य सिद्धान्त माननेपर अर्थक्रिया नहीं पायी जायगी । पुण्यपापरूप क्रियाका भी अभाव होगा । आप्तमीमांस में कहा है "पुण्यपापक्रिया न स्यात् प्रेत्यभावः फलं कुतः । धमोक्ष च तेषां न येषां त्वं नासि नायकः ॥ ५० ॥" वस्तु स्वरूपकी दृष्टिसे विचार किया जाय, तो उसमें क्षणिकत्वके साथ नित्यस्व धर्म भी पाया जाता है । इस सम्बन्धमें दोनों दृष्टियों का समन्वय करते हुए स्वामी समन्तभव लिखते हैं "नित्यं तत्प्रत्यभिज्ञानान्नाकस्मात्तदविच्छिदा । क्षणिकं कालभेदात्ते बुद्ध्यसंवरदोषतः ||५६|| — आप्तमीमांसा ।
SR No.090205
Book TitleJain Shasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages339
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Culture
File Size7 MB
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