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________________ १०४ जैनशासन यहाँ हम इतना ही बताना चाहते थे कि अहिंसाका व्यवस्थित पूर्वापर संगत वर्णन भगवान महावीर आदि जैन तीर्थकरोंके शासन के बाहर नहीं पाया जाता । अंगरेजी विश्वकोषमे पाली साहित्यके आधारपर भगवान् महावीरको निर्गन्ध दिगम्बर माना है। आज अहिंसाका उच्च स्वरमें जरोष खूब सुनाई पड़ता है । किन्तु, ऐसे कम लोग हैं जो अहिंसाका मर्म वास्तविक रूपमें जानते हैं । विरोधीपर शस्त्रप्रहारमात्र छोड़ मनमाना विषलो वाणीका प्रयोग करना, मद्य, मांस, मधु आदि पदार्थों का सेवन करना, वेश्यासे यन, शिकार खेलना आदि कार्य करते हुए भी र अहिंसक हा रबिनं वालोंकी भी आज कमी नहीं है। जब अहिंसातत्व जानका सवागीण वगन और परिपालन जन-संस्कृतिके वजके तले हुआ है, तब जैनदृष्टिसे इस विषयपर प्रकाश डालना आवश्यक तया उपयोगी होगा। भारत में अहिंसाका हिंसाके निषेध रूप निवृत्ति परक अर्थ किया जाता है और चीन देशमे उसका विधि रूप (Positive) अर्थ प्रेम अथवा मंत्री किया जाता है । इसको चीनी भाषामें जैन (Jen) कहते हैं। निधारमा अहिंसाको 'पु है' (Pu-HAI) कहते है। अहिंसा जैनधर्म और जैन जीवनका प्राण है । उसका पर्यायवाची शब्द चीनो भाषामें 'जन' या 'जिन' होना भापाशास्त्रियोंके लिए विदोष चिन्तनीय प्रतीत होता है। करुणासे जैन धर्मका सम्बन्ध देखकर निष्पक्ष विद्वान् जहाँ भी विमल प्रेमको गंगा या उसकी शाखाको देखते हैं, वहां वे जैन प्रभावको उद्घोषित किए बिना नहीं रहते हैं। ईसाके तीन चार सदी पूर्व तपशिलामें आयुर्वेदका शिक्षण उच्चकोटिका था। वहीं पशुओंको श्रेष्ठ चिकित्साका भी प्रबन्ध श्रा । इसका कारण पं. जवाहरलाल नेहरू जैनवर्म और बौद्धधर्मका प्रभाव बताते हैं. जो अहिंसापर अधिक जोर देते हैं। अहिंसाकी विचारधाराको एक विशिष्ट मर्यादाके भीतर प्रचारित करनेवाले गांधीजी पर, वैष्णव परिवार में जन्म धारण करते हुए भी, जैनधर्मका विशेष प्रभाव था, कारण वे अपनी माताके प्रभातम घे और उनकी मातापर जैन साधु का विशेष प्रभाव था, यह बात उनकी 1. "In the third or fourth century B. C. there were also hospitals for animals. This was probal l due to the influence of Jainismi und Buddhisin with their umpi.., is 0:1 Yon-violerce," Disco very of India p. 129. . "V. K, Gandhi's another was ander Jain influence Although his inother was i Vaislinava Hindu she came much der the influence of a Jain nionk after her lusband's death."-"In the Path of Mahatma Gandhi' p. 202-by George Cation.
SR No.090205
Book TitleJain Shasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages339
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Culture
File Size7 MB
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