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________________ प्रबुद्ध-साधक जिस आत्मामें अहिंसाको ज्योति जग जातो है, उसका मनुष्योंके सिवाय क्रूर पशुओं तक पर आश्चर्यप्रद प्रभाव दिखता है। एक बार 'प्रबुद्ध भारत' में छपा या' कि एक एपारसन नामक अंग्रेज हाथी पर सवार हो जयदेवपुर के जंगल में शिकार खेलने गया। वहाँ एक शेरको देख हायो डरा। उसने साहबको नीचे गिरा दिया । एण्डरसनने शेरपर दो-तीन गोली चलाई, किन्तु निशाना चूक गया। इतने में शेरने पीछा किया। प्राण बदाने को वह पास की एक झोपड़ी में पहुंचा, जहाँ एक दिगम्बर साघु रहा करते थे। साधु के इशारा करते हो शेर शान्त हो गया और कुछ देर बैठकर चुपचाप चला गया। जब एण्डरसनने नागा बाबासे इस प्राश्चर्गका कारण पूछा नह गाएर कट्टा'-"जिसके निम्मे हिमाका विचार नहीं है उसे शेर या सर्प कोई भी हानि नहीं पहुँचात । तुम्हारे मनमें हिंसाका भाव है, इसलिए जंगली जानवर तुमपर आक्रमण करते हैं। उस दिनसे एण्डरसनने शिकार खेलमा छोड़ दिया और वह शाकाहारी बन गया । दाफा और चिटगोवमे बहुतोंने एण्डरसनके इस परिवर्तित रूपको देखा है । जयपुर राज्य के दीवान श्री अमरचन्द्रजी जैन बड़े जानवान और संत प्रकृतिके महापुरुष थे। एक विशेष अवसर पर राज्यके अजायब घरके भूखे शेरके सयक्ष, उन्होंने अपने अहिंसा प्रतका परम आदर करते हुए, मांस न रखवा कर मिठाई रखवाई और शेरसे कहा-''यदि तुझे भूख शांत करता है, तो यह मिठाई भी तेरे लिए उपयोगी है। किंतु यदि मांस ही खाना है तो मुलको स्वशीसे खा सकता है" इस अहिंसापूर्ण प्रेम भरी वाणीका शेरपर बड़ा प्रभाव पड़ा और उसने सबको चकित करते हुए शांत भावसे मिठाई खा ली। इस महिंसाके द्वारा जो मात्म-बल जागृत होता है उसके प्रभाषसे यह जीव अभय और आनम्बकी नवीन ज्योतिको इस अंधकारपूर्ण जगत्में प्रकाशित कर सकता है। इस श्रेष्ठ साधनाके पवित्र पथपर चलने योग्य जबतक आत्मामें बल उत्पन्न नहीं होता तबतक प्राथमिक साधकका कर्तव्य है कि वह अपने भादर्माको हृदय में रख साघुस्वसे अंकित सत्पुरुषोंको अपने जीवनका पथ-प्रदर्शक माने और उनको अपनी श्रद्धाञ्जलि अर्पित करते हए अन्तःकरणसे कहे __ "जमो लोए सव्यसागं" १. प्रबुद्धभारत अंग्रेजी मासिक १९३४, १० १२५-२६। । "One, who has no .Himsa, is never jujured by tigers or snakes, Because you have feeling of Himsa in your mind you are attacked by wild animals".
SR No.090205
Book TitleJain Shasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages339
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Culture
File Size7 MB
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