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________________ प्रबुद्ध-साधक प्राचीनताको ही सत्यकी कसौटी माननेवाले कहते हैं-दिगम्बर विचारधारा अर्वाचीन है । सवस्थ मुद्राका मार्ग सबसे प्राचीन है। यदि मनुष्य तककी दृष्टि से इसपर विचार करे तो उसे स्पष्टताकी कोई आवश्यकता नहीं है । कारण, यह तो बालक भी जानता है कि माताके उदरसे पहिले दिगम्बर-शिषु ही जन्म लेता है; पश्चात् वस्त्रादि परिधान वाला बनाया जाता है। प्रो० बलदेव उपाध्याय दिगम्बरस्वको भगवान पार्श्वनाषके सादकी वस्तु बताते हुए लिखते है-"पार्श्वनाथ वस्त्र धारणके पक्षपाती घे। पर महावीरने नितान्त साधनाफे लिए वस्त्र-परिघानका बहिष्कार कर नग्नताको ही आदर्श याचार बताया है।" (भारतीय दर्शन, पृ० १४६)। जैन-आगमकी दृष्टि में यह बात विपरीत है। भगवान ऋषभदेव आदि सभी तीर्थंकरोंने परम कल्याण प्राप्तिके लिए स्वयं अपने जीवन द्वारा दिगम्बर श्रमणमुद्राका प्रचार किया था। अडिसान्तत्त्वज्ञान और अध्यात्म-विज्ञान के प्रकाश में भी दिसम्वरत्व 'जिन' कहे जानेवालेको मावश्यक मुद्रा हो जाती है । अघतक पुरसतस्व विभाग द्वारा जो जैन मूर्तियों आदिकी उपलब्धि हुई है, उनके सूक्ष्म निरीक्षणसे ज्ञात होता है कि अत्यन्त प्राचीन मूर्ति कादि दिगम्बर-मुदासे अंकित है । शिम्बरसम्प्रदाय के विषयमें अंग्रेजी विश्वकोषकारका निम्न कमन विशेष योधप्रद है"जैनधर्म दिगम्बर और श्वेताम्बर नामक वो महान् सम्प्रदायोंमें विभक्त है । श्वेताम्बर सम्प्रदाय अभीतक सम्भवतः ५वीं सदी तक का सिद्ध होता है। किन्तु, दिगम्बर-मादाय ईस्वी सन्ही ५ सभी पूर्व तक एक्के तौरपर प्रमाणित होता है। यह दिगम्बर लोग, बौद्धोंके पालो पिटकोंके अनेक उस्लेखों में "निग्गण्ठ नामसे कहे गये हैं। अतएव इन्हें कमसे कम ईसासे ६ सदी पूर्वका तो अवश्य होना चाहिये । अशोकके एक शिलालेख में निगाष्ठोंका उल्लेख आया है।" ___ सचल संप्रदायको प्राचीनताके आसनपर समासोन करनेके मोहवश निगण्ठ शब्दका अभिधेप दिगम्बर साधु न कर ऐसे सवस्य साघु करनेका श्रम उठाया 1, "The Jains are divided into two great parties Digambers or skyclad ories and the Swetambers or the white robed ones. The latter have only as yet been traced and that doubtfully as far back as the 5th century after Christ. The former are altnost certainly the same as the Niganthas, who are referred to in numerous passages of Buddhist Pati Pitatkas and must therefore be atteast us old as the oth century BC.-The Niganthas are referred to in one of Asoka's edicts" Vide Ency. Brit. Ed. Eleverith Vol. 15 p. 127.
SR No.090205
Book TitleJain Shasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages339
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Culture
File Size7 MB
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