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के स्थान पर अल्पदण्ड आवश्यक है | अपराध के वातावरण का दायित्व काल एवं प्रजा पर नहीं, राजा पर है" । अपराध की मनोवृत्तिजब तक समाप्त नहीं हो जाती तब तक अपराध समाप्त नहीं हो सकता, अतएव दण्डविधान मनोवृत्ति और आदत पर विशेष ध्यान देता है । दमन दण्ड का साधन है, सुधार साथ्य है । दण्ड वही है, जिससे अपराध समाप्त किया आ सके । दमन के माध्यम से पशु भी सुधारे और निमन्त्रित किए जाते हैं | सम्जन व्यक्ति भी दुष्टों के समर्ग से दुष्ट हो जाते हैं, उन्हें दण्ड की शिक्षा के माध्यम से सन्मार्ग पर लाया जाना चाहिए" । दण्ड का उद्देश्य चरित्र, नैतिकता तथा मानवीय गुणों का विकास करना है। जो कुछ सोचा जाता है, वह परिस्थिति विशेष में मूर्तरूप धारण कर लेता है। राजदण्ड के माध्यम से व्यक्ति उचित मार्ग पर लाया जाता
कामन्दकीय नीतिस्तर
आचार्य कामन्दक ने 400 ई. के लगभग एक पद्यमय ग्रंथ नीतियार लिखा.जो कि आचार्य शुक्रकृत नीतिसार का संस्करण होने के साथ-साथ कौटिल्य के अर्थशास्त्र को भी आधार मानता है । कामन्दक ने कौटिल्य का निम्नलिखित रूप से स्मरण किया है
"जिसने अर्थशास्त्ररूप महासमुद्र से नीतिशास्त्र रूप अमृत निकाला उस असौमाण सम्पन्न विष्णुगुप्त (कौटिल्य) को नमस्कार है |
कामन्दक कौटिल्य के अर्थशास्त्र की परम्परा के पालन के साथ स्मृतियों का भी समन्वय करते हैं । उनके अनुसार समाज (वर्ण) अपनी विधियों (धर्म) के पालन से ही नाश से बच सकता है। राज्य की यही आवश्यकता है कि वह सामाजिक विधियों के पालन की व्यवस्था करे। इस प्रकार कामन्दक ने सामाजिक विधि को जमा हुए उसके लाग्य की लापता स्वीकार की विधि को धर्मशास्त्रों पर आधारित मानते हुए उनका कहना है कि आर्यों का व्यवहार विधि (धर्म) और उनका निषेध अधर्म है। इस प्रकार कामन्दक ने आपस्तम्ब मनु एवं अर्थशास्त्र के समन्वय पर सामाजिक विधि की सर्वोच्चता प्रस्तुत की । कामन्दक के समय में देश में बाल आक्रमण होने लगे थे, उसका प्रभाव सामाजिक नैतिकता पर भी पड़ा । ऐसे समय पूर्व परम्परः प्राप्त नैतिकता की सुरक्षा की आवश्यकता थी । कामन्दक ने इसके लिए राज्य को माध्यम बनाया। सामाजिक नैतिकता और राज्य के सम्बन्य निर्धारण में कामन्दक कौटिल्य का मार्गग्रहण करते हैं। उसके अनुसार असामाजिक नैतिकता के उन्मूलन में राज्य सभी प्रकार की नीतियों का प्रयोग कर सकता है । इस प्रकार राज्य एवं समाज के हित के प्रतिकूल जाने वाली शक्ति का उन्मूलन राज्य अनैतिक माध्यमों से भी कर सकता है और वह राजघर्म है । अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्धों में इस प्रकार के विविध कूट प्रयोगों को स्थान दिया गया । इस प्रकार कामन्दक राज्य के व्यवहार में अर्थशास्त्र की परम्परा स्वीकार करते हैं और सामाजिक विधि, नैतिकता एवं राज्य के आधार में स्मृतियों की । लेकिन सामाजिक विधि एवं राज्य के सम्बन्ध में उस काल की स्थिति का प्रभाव पड़ता है, जिसमें सामाजिक विधि की रक्षा का एकमात्र माध्यम राज्य रह जाता है।
____ कामन्दक के अनुसार स्वामी, मंत्री, राज्य, दुर्ग, कोष, सेना, मित्रवर्ग इन सबका नाम राज्य है । बलपूर्वक सत्वगुण का अवलम्बन कर बुद्धि से निर्गम के उपाय को देखता हुआ राजा निरन्तर जागता हुआ सा इन सातों अंगों के लाभ का यत्न करे | कुलीनता, वृद्ध जनों की सेवा, उत्साह, स्थूललक्षिता, चित्त का ज्ञान, बुद्धिमत्ता, प्रगल्मता, सत्यवादिता इत्यादि राजा के गुण अनेक गुण