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________________ J 3 सभी विषय सभा के आधीन थे। समिति राज्य की केन्द्रीय संस्था प्रतीत होती है। अथर्वद में एक स्थान पर उल्लेख है कि ब्राह्मण सम्पत्ति का अपहरण करने वाले राज्य को समिति का सहयोग नहीं मिलना चाहिए" | दूसरे स्थान पर राजा के लिए समिति के चिर सहयोग की शुभाकांक्षा प्रकट की गई है" । राज्याभिषेक के समय ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र को आमन्त्रित किया जाता था ताकि वे महार्षीनिधि की भाँति मनोनीत राजा की रक्षा करें। राजा की घोषणा इन शब्दों में की जाती थीहे जनता ! अमुक व्यक्ति तुम्हारा राजा है, किन्तु हम ब्राह्मणों का राजा सोम है (शतपथ ब्राह्मण 5/3/3/12, 5/4/2/3) इससे इस सिद्धान्त का समर्थन होता है कि धर्म जिसका प्रतिनिधि ब्राह्मण है, उस राजा या छत्र से ऊपर है, जिसका शासन जीवन के उन व्यवहारों और क्षेत्रों पर हैं जो धर्म के अन्तर्गत नहीं आते । (3) महाकाव्यों में वर्णित राजनीति रामायण और महाभारत ये दो प्राचीन बड़े महाकाय हैं। इन दोनों के काल के विषय में विद्वानों में मतभेद है। डॉ. राधाकुमुद मुकर्जी के अनुसार महाभारत पातंजलि के महाभाव्य ( ई. पू. दूसरी शताब्दी) तक पूर्ण हो चुका था " जैकोबो मूल रामायण की रचना 600 ई. पूर्व तथा मैक्डॉनल्ड 500 ई. पूर्व मानते हैं। मूल रामायण में प्रक्षेप जोड़े जाते रहे, फिर भी विद्वानों ने यह मत व्यक्त किया है कि रामायण का वर्तमान रूप 200 ई. तक बन गया था | रामायण और महाभारत दोनों के आधार पर यहाँ राजनीति का विवेचन किया जायेगा, क्योंकि दोनों का विवेचन लगभग समान है। प्रजा में मात्स्यन्याय का विनाश करने के लिए राजा की आवश्यकता हुई । राजा की कार्य लोकरंजन करना है । रक्षण, पालन और रंजन कार्य की समानता के कारण राजा और क्षत्रिय एक दूसरे के पर्याय के रूप में प्रयुक्त होते हैं। प्रजा के योग, क्षेम, व्याधि, मरण और भय का मूल राजा ही है" । राजा के बिना लोक की स्थिति और सुख दोनों असम्भव है" । महाकाव्यों में वर्णित राजा निरंकुश नहीं है, उसे धर्म और नीति के अनुसार शासन चलाना होता है । अत्याचारी राजा अधिकारच्युत कर दिया जाता है। प्रजाओं का उत्पीड़न करने वाला राजा पागल कुत्ते की भाँति वध का पात्र है" । राजा ही योग्य व्यक्तियों की योग्य पदों पर नियुक्ति करता है। 'नारद के कृतास्ते वीर मन्त्रिण:' ( सभा पर्व 5/16 ) से स्पष्ट है कि राजा ही मन्त्रियों का नियोजक था, मन्त्रीगण राजकुत्या राजकर्तारः नहीं थे" । सामान्यतया राज्याधिकार वंशानुगत होता था। राजा की मृत्यु के पश्चात् नमका ज्येष्ठ पुत्र स्वत: राज्याधिकारी बन जाता था। परन्तु यदि ज्येष्ट पुत्र के गम्भीर शारीरिक दोष हो तो उस अवस्था में वह राज्याधिकार से वंचित कर दिया जाता था। अन्धे धृतराष्ट्र का उदाहरण इस विषय में उल्लेखनीय है। कोढ़ी होने के कारण देवापि का सिंहासनाधिकार जाता रहा था और उसके स्थान पर शान्तनु राजा बनाया गया था । राजा को जनपद, कुल, जाति, श्रेणी और पूरा इन संघीय संस्थाओं के धर्मों का आचार और नियमों का पालन आवश्यक था। महाभारत में गणसंसद संघीय शासन का उल्लेख आता है, जो उस समय प्रचलित है। कई ग्रामों का संयुक्त शासन भी होता था। इसके अतिरिक्त राजतन्त्र प्रणाली भी प्रचलित थी ।
SR No.090203
Book TitleJain Rajnaitik Chintan Dhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRameshchandra Jain
PublisherArunkumar Shastri
Publication Year
Total Pages186
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Culture
File Size4 MB
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