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करते समय वद्ध महाराज उसके कत्तर्व्यमार्ग का उपदेश देते थे। युवराज धनमद या प्रभुतामद से अपने माता पिता या अन्य परिवार के व्यक्तियों को अवेहलना नहीं करता था। परिवार के साथ प्रजा को भी सन्तुष्ट बनाए रखने का कार्य युवराज करता था। राष्ट्र के महाजनों को अपमान तथा पीड़ा न पहुँचाने के कार्य से सदा दूर रहता था । विद्या, कर्म और शोल से वह प्रजा का अनुरंजन करता था। इस प्रकार राजा के प्रत्येक कार्य में वह सहायक था ।
दौवारिक दौवारिक से तात्पर्य राजमहल के निरीक्षक से है। प्राचीन काल में राजाप्रमाद मैं आने जाने वालों पर बड़ा ध्यान रखा जाता था । कौटिल्य का कहना है कि राजमहल की चौथी कक्षा में राजा को रक्षा दौवारिक हाथ में माला आदि लिए हुए करे । राजमहल निरीक्षक की चार श्रेणियाँ थी । ( 1 ) प्रतीहार, ( 2 ) महाप्रतोहार (वर्ध. च. 2/64) (3) दौवारिक (वर्ध. च. 9/95) (4) महादौवारिक पूर्व पूर्व की उपेक्षा उत्तरोत्तर पर अधिक अधिकारमुक्त था। प्रतीहार लोग राजसी ठाटबाट और दरबारी प्रबन्ध की रोढ़ थे ।
प्रतीहारों के ऊपर महाप्रतीहार होते थे और दन महाप्रतीहारों में भी जो मुखिया था, उसका पद दौवारिक का था। ये प्रतीहार लोग राजकुल के नियमों और दरबार के शिष्टाचार में निष्णात होते थे। उसयुग में सामन्त, महासामन्त, मांडलिक, राजा, महाराजा, महाराजाधिराज, चक्रवर्ती, सम्राट आदि विभिन्न कोटि के राजाओं के लिए भिन्न भिन्न प्रकार के मुकुट और पद होते थे, जिन्हें पहचानकर प्रतीहार लोग दरबारियों को यथायोग्य सम्मान देते चन्द्रप्रभचरित में आमदरबार में बैठे राजागण का प्रधान दौवारिक के द्वारा आने की सूचना पाकर अन्दर (दीवाने खास में) प्रवेश करने का उल्लेख किया गया है। नाम और कुल बतलाने के बाद ही अन्दर प्रवेश करने की अनुमति दी जाती थी " । आदिपुराण से ज्ञात होता है कि दूसरे देश से जो राजा और दूत वगैरह आते थे वे अपने आने का सन्देश महाद्वारपाल के द्वारा राजा से निवेदन करते थे ।
अन्सर्वशिक यह राजा की अंगरक्षक सेना का प्रधान होता था। राजा को चाहिए कि अंशपरम्परा से अनुगत, उच्चकुलेत्पन्न, शिक्षित, अनुरक्त, और प्रत्येक कार्य को भली भाँति समझने वाले पुरुषों को अपना अंगरक्षक नियुक्त करे, किन्तु धन सम्मानरहित विदेशी व्यक्ति को तथा एक बार पृथक होकर पुनः नियुक्त स्वदेशी व्यक्ति को राजा अपना अंगरक्षक कदापि नियुक्त न करे। राजमहल की भीतरी सेना राजा और रनिवास की रक्षा करें? 12
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प्रशरता सेना सम्बन्धी एक प्रधान अधिकारी था। श्री उदयवीर शास्त्री ने इसे कंटकशोधनाध्यक्ष लिखा है। श्री एन. एन. ला. का मत है कि इस अधिकारी से उसी तीर्थका आशय है, जिसे महाभारत में कारागृहाधिकारी कहा गया है2 13 1
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समाहर्त्ता यह राजकीय आय प्राप्त करने वाला सर्वोच्च अधिकारी था। आय प्राप्ति के अतिरिक्त यह जनपद के शासन सम्बन्धी विविध प्रकार के कार्यों का निरीक्षण भी करता था । समाहर्त्ता के आधीन बहुत से अधिकारी तथा विविध विभागों के अध्यक्ष काम करते थे । अध्यक्षां में मुख्य निम्नलिखित है
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आकाराध्यक्ष खनिज विभाग का मुख्य अधिकारी ।
पण्याध्यक्ष
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व्यापार तथा क्रय विक्रय विभाग का अधिकारी ।