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________________ अनुयायी रहे हैं। परन्तु संगति, वातावरण अनुकूल न होने, धार्मिक उपदेश की उपलब्धि न होने से जीवन में संस्कार-हीनता आ गयी है। इस समाज में पार्श्वनाथ तीर्थ की उपासना करना, रात्रि में भोजन नहीं करना, वस्त्र से जल को छानकर पीना आदि संस्कार अब भी उपलब्ध होते हैं। जो शक्ति की उपासना करते हैं उन्हें शाक्त कहते हैं। ये विविध देवी-देवाताओं तथा देवी माताओं की शक्ति रूप में उपासना करते हैं। मूर्ति की स्थापना कर जल, पुष्प, चन्दन आदि द्रव्यों से पूजा करते हैं। धार्मिक पर्वी पर विशेष पूजा करते हैं। इनके आचार-व्यवहार, रीति-रिवाज वैष्णवों के समान होते हैं। सिक्ख सम्प्रदाय के अनुयायी मुख्यतया गुरु के उपासक होते हैं। गुरुजन के उपदेश से वे एक ब्रह्म की उपासना, बिना मूर्ति और बिना द्रव्य के निर्गुण भक्ति के साथ करते हैं। ये गुरुजन इस पन्थ के उपासकों को विनय, दया, दान, सेवा तथा परब्रह्म की भक्ति करने का उपदेश देते हैं। तदनुसार वे कर्तव्यों का पालन दृढ़ता के साथ करते हैं। वर्तमान में नव गुरुबर न मिलने के कारण तथा अन्तिम नवम गुरुवर के इस उपदेश के कारण-"कि अब गुरुवर का मिलना कठिन है अतएव पूज्यग्रन्थ को ही गुरु समझो।' इसलिए इस सम्प्रदाय में पूज्य ग्रन्थ की ही पूजा गुरुवर के समान होती है। उपद्रवियों के अत्याचार, अन्याय एवं अपमान को सहन न करना और उनका संहार करना-यह भी उनका मुख्य उपदेश है। इनके ग्रन्थ साहव में दया, सेवा, विनय तथा अद्धैत ईश्वर की उपासना करने का अनिवार्य उपदेश है। ईसाई इंशु महापुरुष को, ईश्वर का भेजा हुआ पैग़म्बर मानते हैं और उसके उपदेश के अनुसार दुखियों एवं असहायों की सेवा करने को अपना परम कर्तव्य एवं धर्म समझते हैं। उनके वर्तमान आचार एवं व्यवहार से ज्ञात होता है कि सत्य बोलना, दगाबाजी न करना इनका धार्मिक गुण है, किन्तु दया का व्यवहार मनुष्यों तक ही सीमित है। कारण कि इस सम्प्रदाय में मांसभक्षपा की तथा शिकार करने की प्रवृत्ति प्रायः देखी जाती है। इनके सिद्धान्त में भी सृष्टि के पूर्व भूमि का जलमय होना, सृष्टि कर्तृत्व, आकृति तथा संख्या को ही मूलतत्व की मान्यता, विश्व की स्थिरता आदि की मान्यता है । मूर्ति तथा जल, पुष्प आदि द्रव्यों के बिना ही ईश्वर की निर्गुण उपासना करना इस सिद्धान्त का ध्येय है। इस्लाम का अर्थ शान्ति है। किसी देश या समाज के अशान्त वातावरण में मुहम्मद साहब ने शान्ति के लिए अनेक प्रयत्न किये थे, इस कारण यहाँ की प्रजा द्वारा वे मुहम्मद साहब, अल्लाह के द्वारा भेजे हुए पैग़म्बर के रूप में माने जाने लगे। इनके मौलिक ग्रन्ध कुरान शरीफ में अहिंसा का उपदेश है। मांस-पक्षियों को मांस त्याग का उपदेश दिया गया है। मूल सिद्धान्त को भूल जाने से ही इस सम्प्रदाय में लोलुपतावश प्रायः मांस-भक्षण की प्रवृत्ति चल पड़ी है। मौलिक उपदेश तो यही प्राक्कथन :: 11
SR No.090200
Book TitleJain Pooja Kavya Ek Chintan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDayachandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages397
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devotion
File Size7 MB
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