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________________ ब्रह्माद्वैत दर्शन में एक ही परब्रह्ममय सम्पूर्ण जगत् माना गया है, प्रकृष्ट परब्रह्म से ही विश्व का कल्याण होता है, इसी में विलीन हो जाना ही मुक्ति । इसलिए इस दर्शन में परब्रह्म की ही उपासना करना एक कर्तव्य माना गया है। शब्दाद्वैत दर्शन में एक शब्द तत्त्व से व्याप्त सम्पूर्ण जगत् माना गया है। जितने पदार्थ दृश्यमान हैं ये तव शब्द की ही पर्याय हैं, शब्द से ही आत्मा का कल्याण होता है, पाड़ में लिलीन हो जाना ही मुक्ति है। अतः शब्द की उपासना-भक्ति करना ही प्रधान कर्तव्य है। ___ भारत में या विश्व में जितने भी अद्वैतदर्शन प्रचलित थे या हो रहे हैं उन सबमें अपने अपने इष्टदेव अथवा इष्ट सिद्धान्त की उपासना का विधान है। आधुनिक सम्प्रदायों में उपासना का महत्त्व इस सम्प्रदाय में ईश्वर-भक्ति के आधार पर ही श्रद्धा, आचार और लोक व्यवहार माना गया है। ईश्वर भक्ति से ही आत्मकल्याण और जगत्कल्याण होता है। ईश्वर में विलीन हो जाना ही मक्ति मानी गयी है। इसमें अनेक उपसम्प्रदाय हैं जैसे रामभक्त, कृष्णभक्त, सनातन हिन्दू, याज्ञिक आदि। इस सम्प्रदाय में ईश्वर में और ईश्वर-अवतार के प्रति भक्ति की मान्यता विशिष्ट है। शैव सम्प्रदाय में शिव-पार्वती की स्मृति में एक कुण्ड में स्थित शिवलिंग को पूजा को 'अखण्ड ब्रह्ममपिण्ड' कहते हैं, शिव-पार्वती की जल, चन्दन, पुष्य, पत्र, फल, नैवेद्य, दीप आदि द्रव्यों से पूजा करके तथा विविध यज्ञों के द्वारा उपासना के माध्यम से स्वर्ग, मोक्ष की प्राप्ति मानते हैं, तदनुकूल आचरण एवं व्यबहार और पर्वो की मान्यता प्रायः वैष्णवों के समान करते हैं। राधावल्लभ सम्प्रदाय के भक्त पारस्परिक प्रेम-प्रीतिपूर्ण भक्ति को प्रमुख पानकर राधा-कृष्ण को ईश्वर के रूप में मानते हैं, जल आदि द्रव्यों से पूजा करते हैं, विश्व का कर्ता, धर्ता, हतां मान्य करते हैं। राधाकृष्ण की मूर्तिस्थापित कर पूजा करते हैं। सीताराम सम्प्रदाय के भक्त जन रामचन्द्र एवं सीता को जगत् का कर्ता, धर्ता, हर्ता, ईश्वर मानते हैं, जल, पुष्प आदि द्रव्यों से पूजा करते हैं, सीता-राप की मूर्ति स्थापित कर उपासना करते हैं, तदनुल आचरण व्यवहार और पर्वो की मान्यता करते हैं। कबीरपन्थी सम्प्रदाय में आध्यात्मिक तत्त्व की मुख्यता है। इस सम्प्रदाय के मानव मूर्ति के बिना तथा जल चन्दन आदि द्रव्यों के बिना ईश्वर की निर्गुण रूप से भक्ति-पूजा करते हैं। ईश्वर का ध्यान, ग्रन्थों का अध्ययन, धार्मिक लेखन, नैतिक आचरण आदि के द्वारा पन तथा वचन को पवित्र रखना इसका लक्ष्य है। सराक शब्द श्रावक का अपभ्रंश है। ये प्राचीन काल से ही जैनधर्म के 10 :: जैन पूजा-कान्य : एक चिन्तन
SR No.090200
Book TitleJain Pooja Kavya Ek Chintan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDayachandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages397
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devotion
File Size7 MB
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