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________________ किया है - "देवशास्त्रगुरुरतनशुभ, तीन रतन करतार । भिन्न-भिन्न कहुं आरती, अल्प सुगुण विस्तार" | अर्थात् देव, शास्त्र, गुरु-ये तीन शुभरल हैं जो कि सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान, सम्यक्चारित्र - इन तीन आध्यात्मिक रत्न के परमकारण हैं और ये आध्यात्मिक रत्न मुक्ति के कारण हैं। इन तीन विशेषताओं के कारण ही, दैनिक पूजन में एवं विशेष पूजन तथा विधानों में, देव-शास्त्र-गुरु पूजन सबसे प्रथम की जाती है चाहे वह संक्षेप से हो या विस्तार से हो । प्राचीन संस्कृत भाषा की देव-शास्त्र-गुरु महापूजन में इस पूजा का महत्त्व तथा प्रयोजन एवं विशेषता का दर्शन कराया गया है ये पूजां जिननाथशास्त्रयमिनां भक्त्या सदा कुर्वते त्रैसन्ध्यं सुविचित्रकाव्यरचनामुच्चारयन्तो नराः । पुण्याइया मुनिराजकीर्तिसहिता भूत्वा तपोभूषणास्ते भव्याः सकलावबोधरुचिरां सिद्धिं लभन्ते पराम् ॥' सारांश - जो पुण्यात्मा मानव प्रातः मध्यकाल और सायंकाल, अनेक प्रकार की भावपूर्ण काव्य-रचना द्वारा गुण कीर्तन करते हुए भक्ति से सदा देव-शास्त्र-गुरु की पूजा करते हैं वे भव्य मानव मुनिपद धारण कर तपश्चरण से शोभित होते हुए केवल ज्ञान से रुचिर उत्कृष्ट निर्वाणपद को प्राप्त करते हैं। इस प्रकार जैन पूजा का आधार या निमित्त यथार्थ देव-शास्त्र-गुरु- ये तीन शुभरत्न कल्याणकारी हैं। उपरिकधित तथ्य कृतयुग ( अवसर्पिणी का चतुर्थकाल) में अवतरित हुए साक्षात् तीर्थकर अर्हन्त देव का है, उनकी दिव्यवाणी साक्षात् शास्त्र या धर्म की है और उन तीर्थंकर के मार्ग पर आचरण करनेवाले साक्षात् साधु का है, परन्तु वर्तमान युग में साक्षात् तीर्थंकर के अभाव में, उनकी प्रतिनिधि रूप वीतराग प्रतिमा की, दिव्यवाणी के अभाव में उसकी प्रतिनिधि रूप शास्त्र या ग्रन्थ की और साक्षात् साधु के अभाव में उनके प्रतिनिधिस्वरूप तत्प्रतिमा की अथवा सुयोग्य ज्ञानी ध्यानी दिगम्बर मुनि की उपासना करना उपयुक्त है । यदि यह पद्धति न अपनायी जाए तो गृहस्थ मानव समाज को उपासना करने का अन्य कोई उपाय नहीं है अतः देव - शास्त्र - गुरु की प्रतिनिधि पद्धति से उपासना करना श्रेयस्कर है। प्रश्न- यहाँ पर कोई तर्कवादी व्यक्ति प्रश्न करता है कि आकाशपुष्प के समान सर्वलोक में सर्वज्ञ वीतराग अर्हन्त का अभाव है अतः सर्वज्ञ के प्रति 1. ज्ञानपीठ पूजाजलि सं.पं. फूलचन्द्र शास्त्री प्र.भा. ज्ञानपीठ देहली सन् 1997. 110. 2. áu, q. 43. जैन पूजा काव्य का उद्भव और विकास : 49
SR No.090200
Book TitleJain Pooja Kavya Ek Chintan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDayachandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages397
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devotion
File Size7 MB
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