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________________ अतिशय क्षेत्र मूडविद्री कारकल से मूडविद्री 26 कि.मी. दूर है। वेणूर से सम्भवतः 25 कि.मी. की दूरी पर है। मूडविद्री के लिए बसों का सबसे अच्छा साधन मंगलोर से हैं। निकटतम वायुयान स्टेशन और बन्दरगाह मंगलोर हैं। सबसे निकट का रेलवे स्टेशन भी मंगलार ही है, दिल्ली से मंगलोर तक मंगलोर एक्सप्रेस (जयन्ती जनता) तथा केरल एक्सप्रेस प्रतिदिन यहाँ गमनागमन करती है, स्टेशन से जैनमठ को जाने-आने की सुविधा है। यहाँ का एक सहस्त्रस्तम्भों से सुशोभित त्रिभुवन तिलक चूडामणि मन्दिर ( चन्द्रनाथ मन्दिर), स्थानीय मन्दिरों में विराजमान पक्की मिट्टी आदि को निर्मित प्राचीन प्रतिमाएँ तथा कुछ हीरामोती आदि की दुर्लभ प्रतिमाएँ दृश्य हैं। कतिपय पाश्चात्य इतिहासज्ञ कलाविदों ने लिखा है कि यहाँ की मन्दिर निर्माण कला, नेपाल और तिब्बत की भवननिर्माांग कला से तुलना रखती है। दोनों देशों की कलाओं के साथ कलाओं का साम्य आश्चर्यप्रद एवं ज्ञातव्य है । निषिधियां वा समाधियों मूवी में समाधियों की अद्भुत रचना दर्शनीय है। ऐसी रचना भारत में सम्भवतः अन्यत्र नहीं है। ये समाधियाँ 18 मठाधिपतियों तथा दो व्रती श्रावकों की ज्ञात होती हैं। किन्तु लेख केवल दो ही समाधियों पर अंकित है। समाधियाँ तोन ते लेकर आठ तल (खण्ड) तक ही हैं। इनका एक तन दूसरे तल की ढलवाँ छ के द्वारा विभक्त होता है। इस कारण से काठमाण्डू या तिब्बत से पैगोडा जेसी आकुनिचाली दिखाई देती हैं। इनकी प्रत्येक मंजिल की छत ढलावदार हैं। ये भारत में विचित्र शैली की हो रचना है I मूढविद्री क्षेत्र में 18 प्राचीन डि. जेन मन्दिर, चार चोबीसो मन्दिर, मान स्तम्भ और सैकड़ों प्राचीन मूर्तियाँ विराजमान हैं। अनेकों विशाल और सुन्दर मूर्तियाँ अपने परिकरों के साथ शोभित है। सहस्रकूट चालय भी दर्शनीय है। मूढविद्री न केवल एक प्रमुख जैन केन्द्र तीर्थ, अमुल्य प्रतिभा संग्रह तथा अपूर्व शास्त्र संग्रह का आयतन है अपितु कवि रत्नाकर की जन्मभूमि भी हैं। महाकवि की अमरकृतियाँ भी प्रसिद्ध हैं जैसे 'भरतेश वैभव' रत्नाकरशतक' आदि। उनकी स्मृति में यहाँ पर 'रत्नाकर नगर नाम की एक कॉलोनी बसावी गयी है। · उक्त कारण विशेषों से यह मूइचिद्री क्षेत्र श्रद्धा के साथ पूजा बन्दना एवं कीर्तन के योग्य है ।' 1. भारत के दिगम्बर जैन सीधं पंचम भाग । 384 :: जैन पूजा काव्य एक चिन्तन i "
SR No.090200
Book TitleJain Pooja Kavya Ek Chintan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDayachandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages397
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devotion
File Size7 MB
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