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________________ कन्दादि वर्तमान में कांटब प्रान्त के चकमा जिले के तीधं हल्ली तालुक (तहसील) के अन्तर्गत, आदिवासी क्षेत्र की, तीन सहस्र फीट से उन्नत एक पहाड़ी है। कुन्दकुन्दाचार्य से सम्बन्धित होने के कारण यह प्राचीन काल से ही तीर्थ मान्य है। मंगलं भगवान वीरों, मंगलं गौतमो गणी। मंगलं कुन्दकुन्दायों, जैन धर्मोऽस्तु मंगलम्॥ यह मंगल मन्त्र प्रायः सर्वत्र प्रसिद्ध है और इसमें नमस्कृत कुन्दकुन्दाचार्य से हो इस पहाड़ी का सम्बन्ध है। इसी पर उन्होंने घोर तपस्या की थी। इसी पहाड़ी सं वे विदेह क्षेत्र गये हैं। इसी पर उन महान आचार्य के पवित्र चरण 13 कलियोंवाले कमल में निर्मित हैं। ____ आचार्य कुन्दकुन्द का जन्म दक्षिण भारत के पेदयनाडु जिले के अन्तर्गत कोण्डकुन्दपुर नामक ग्राम में एक अन्य मत के अनुसार गुन्तकल के समीप कुण्डकुण्डी ग्राम में) इसा की प्रथम शताब्दी में हुआ था। अपने जन्मग्राम के नाम से ही ये आचार्य कुन्दकुन्द के नाम से प्रसिद्ध हो गये । इनका वास्तविक नाम आचार्य पद्मनन्दी दर्शाया जाता है। इनके पाँच नाम दूसरे भी प्रसिद्ध हैं आचार्यः कुन्दकुन्दाख्यो, वकीयो महामतिः। एलाचायाँ गृपिच्छः, पद्मनन्दी वितन्यत॥ आचार्यः कुन्दकुन्दाख्यो, चक्रग्रीवो महामुनिः । एलाचायों गृद्धपिच्छ इति तन्नाम पंचधाः। कुन्दाद्रि के कुन्दकुन्दाचार्य का पूजाकाव्य श्री कुन्दकुन्दाचार्य के पूजाकाव्य की रचना कवि राजमल द्वारा की गयी है। इस काव्य में 27 पद्य दो प्रकार के छन्दों में निबद्ध किये गये हैं। शब्दावली रचना भावपूर्ण एवं भक्तिरस से परिपूर्ण है। अलंकारों के प्रयोग से कविता की शोभा वृद्धिंगत हो जाती है। इसके पढ़न तथा चिन्तन से आचार्य कुन्दकुन्द के प्रति श्रद्धा तथा बहुमान का भाव जागृत होता है और आत्मानन्द की प्राप्ति होती है। मंगलमय भगवान् वीरप्रभु, मंगलमय गौतम गणधर, मंगलमय श्री कुन्दकुन्द मुनि, मंगल जैनधर्म सुखकार । कन्नड़ प्रान्त बड़ा दक्षिण में, कोण्डाकुष्ठ था ग्राम अपूर्व, कुन्दकुन्द ने जन्म लिया था, दो सहस्र वर्षों से पूर्व।।' 1. जैन पूजांजाले : राजपलकवि. पृ. 71-76 जैन पूजा-काव्यों में तीर्थक्षेत्र :: 393
SR No.090200
Book TitleJain Pooja Kavya Ek Chintan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDayachandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages397
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devotion
File Size7 MB
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