SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 331
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मूडविद्री क्षेत्र का पूजा काव्य ___ मूविद्री क्षेत्र के पूजा-काव्य की रचना को कविवर राजमल पवैया ने करकं पवित्र तीर्थ क्षेत्रों के प्रति अपना सद्भक्ति भाव व्यक्त किया है। इस काव्य में कविवर ने 40 पद्यों को दा प्रकार के छन्दी में निबद्ध किया है। इस काव्य के अन्तर्गत अलंकार, छन्द, काव्यगुण, पांचालीरीति, सरलवृत्ति के साथ पावन तीर्थ का वर्णन करने से शान्तरस को समृद्धि यातित होती है। जिसके पठन मात्र से ही मानव में आनन्द की धारा प्रवाहित होती है दक्षिण भारत कर्नाटक में, दक्षिण कन्नड़भाग प्रसिद्ध, अतिशय क्षेत्र भूडब्रिदी है. कथित जैन काशी सुप्रसिद्ध । क्षेत्रमूलनायक जिनस्वामी, पाश्वनाथ को करूँ, नमन, त्रिभुवन तिलक शीर्ष चूडामणि, चन्द्रनाथ प्रभु को बन्दन। शास्त्रभण्डार का अर्चन पटखण्डागम धवल जयधवल, महाधवल जिनशास्त्र महान द्वादशांग श्रुत श्री जिनवाणी, भाव सहित वन्, धर ध्यान । जल फलादि वसुय्य अर्घ ले, जिनशास्त्रों को नपन करूं, भेद ज्ञान की प्राप्ति हेतु मैं, निज श्रद्धा के सुमन धरूँ।' श्रवणवेलगोल अतिशयक्षेत्र का परिचय एवं पूजा-काव्य कर्नाटक के तीर्थ स्थानों में श्रवणबेलगोल को तीर्थराज की संज्ञा देने के योग्य है। यहाँ पहुँचने के लिए कंबल सड़क मार्ग है। यह तीर्थ बंगलोर से 142 कि.मी. मैसूर से 80 कि.मी., हासन से 48 कि.मी. और अरसी करे (रेलवे स्टेशन) से 70 कि.मी. की दूरी पर विद्यमान है। चन्नसय पड्न नाएक स्थान से यह तीर्थ केवल 13 कि.मी. की दूरी पर अवस्थित है। गोमटेश्वर पूजा-काव्य श्री गोमटेश्वर पूजा-काव्य की रचना कविवर राजमल पवैया द्वारा की गयी है। इस पूजा-काव्य में 24 पद्यों की रचना तीन प्रकार के छन्दों में पूर्ण की गयी है। इस काव्य में अलंकार, प्रसाद गुण, सरलरीति, काव्य के सद्गुणों द्वारा शान्तरस की धारा प्रवाहित की गयी है। पद्यों के पठन मात्र से अर्थबोध हो जाता है। इस काव्य की रचना कर कवि ने धार्मिक तीर्थक्षेत्रों के प्रति भक्ति भाव दर्शाया है। इस काव्य के कतिपय प्रमुख पद्यों का निदर्शन इस प्रकार है ।. श्री मूटविटीपूजन : कथिवर राजमल, प्र.-मुमुझ मण्डल मापाल, बी.सं. 2510, पृ. 1-17 जैन पूजा-काथ्यों पं तीर्थक्षेत्र :: 235
SR No.090200
Book TitleJain Pooja Kavya Ek Chintan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDayachandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages397
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devotion
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy