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________________ स्तुति करते हुए कहने लगे-"प्रभो! क्या इसी प्रकार उपहास और लोकनिन्दा होतो रहेगी" यह कहकर भावभक्ति की उमंग से उन्होंने "भगवान् ऋपभदेव की जय" कहकर मूर्ति को उठाने का प्रयास किया कि मूर्ति सुगमता से उठ गयी-यह उपस्थित जनता ने आश्चर्य के साथ देखा। (3) क्षेत्र के चारों ओर भयंकर जंगल है, पूर्वकाल में इसमें सिंह आदि क्रूर जानवर भी रहत थे। क्षेत्र के निकट तथा क्षेत्र पर पशु चरते-फिरते रहते थे, परन्तु कभी किसी पशु पर कोई बाधा सुनने में नहीं आयी-यह आश्चर्य का विषय है। 1) विक्रम सं. 15 भगवान आदिनाथ मन्दिर में फाल्गुन, आषाड़ एवं कार्तिक मास के वा च में य षण, प अगाशि के सपग टेलों के पूजन की मधुर ध्वनि और वाद्य यन्त्रों के मधुर स्वर निकटवों जनता को सुनाई देते हैं। 5) अनेक ग्रामीण जन अपनी-अपनी मनोकामना लकर भगवान आदिनाथ के समक्ष प्रार्थना करते हैं और मनोकामना पूर्ण होने पर भगवान के चरणों में श्रीफल अर्पित करते रहते हैं। क्षेत्र का प्राकृतिक सौन्दर्य-वेत्रवती (वेतवा की एक सहायक नदी उर्वशी ते एक कि.मी. दूर एक सपाट चट्टान पर मन्दिर है। मन्दिर के उत्तर की और एक छोटी नदी लीलायती है। इस प्रकार इन युगल सरिताओं के मध्य स्थित क्षेत्र की प्राकृतिक सुषमा अवर्णनीय है। ये नदियाँ कल-कल ध्वनि करती हुई पर्वत शिलाओं में टकरातो उछलती-पचन्नती यहती हुई अत्यन्त सुहावनी लगती हैं। एक और पर्वतमालाओं पर प्रसारित सबन वन को हरोतिमा और उनके मध्य शिर उठाकर झाँकते हुए जिनालय के उत्तुंग शिखर तथा उसके शिखर पर फहराती हुई धर्मध्वज, ये सब मिलकर इस सम्पूर्ण अंचल को एवं शान्त वातावरण को सुन्दर लोक जैसा बता देते हैं। मक्तजन इस प्रदेश का आश्रय लेकर आध्यात्मिक साधना में निमग्न हो जाता है। क्षेत्र के नाम की व्युत्पत्ति-जिस प्रकार बौद्ध साहित्य में 'तुम्बधन' का नाम कहा जाता है जो वर्तमान 'तूमैन' कहलाता है। उसी प्रकार प्राचीन काल में इस क्षेत्र का नाम 'तपोवन' कहा जाता था। वर्तमान में तपोवन शब्द विकृत होकर 'थोबन या थूबोन' कहा जाता है। यहाँ कुल 25 मन्दिरों में अनेक उत्तुंग मनोहर जिनबिम्ब विराजमान हैं। शोभित चाह सुचन्द्रपुरी, जिन नेमि स4 से महासुखदाई, पावन 'चन्द्र' सुहावन मंजुल, मंगलपूरित मोद लताई। तासन पश्चिम में सरितातट, थूबन जी की छदा शुभ छाई। मोहत हैं मन मानव के, पन बोस जिनालय में जिनराई। हीरक पन्नग और जवाहर, रत्नन की जिन ज्योति जगाई, पै न मिटो निज मोह महातम, चारित और भवा अधिकाई। 301 :: जैन पूजा काव्य : एक चिन्तन
SR No.090200
Book TitleJain Pooja Kavya Ek Chintan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDayachandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages397
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devotion
File Size7 MB
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