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________________ प्रतिष्ठाकारक पाड़ाशाह प्रतिमाओं के प्रतिष्ठाकारक श्री पाडाशाह के जीवन पर इतिहास ग्रन्थों अपना पूर्तिलेखों से कुछ विशेष प्रकाश प्राप्त नहीं होता। किन्तु किंवदन्तियों के आधार पर यह अवश्य ज्ञात होता है कि श्री पाड़ाशाह गहाई नामक वैश्यजाति के रत्न थे। ये खूबौन (चन्देरी ग्राम के नियासो, जैनधर्म के अटल अद्धानी, कुशल व्यापारी एवं धनकुबेर थे। श्री शान्तिनाथ दि. जैन अतिशय क्षेत्र बजरंगढ़ के मूलनायक श्री शान्तिनाथ भगवान का पूजन श्री शान्तिनाथ पूजा-काव्य के रचयिता कवि राजमल पवैया हैं। इस पूजा-काव्य में कुल 25) पद्य दो प्रकार के छन्दों में निवद्ध हैं। शान्तरस एवं अनेक अलंकारों के प्रयोग से काव्य में भक्ति प्रवाहित होती है। पूजन के काय सरस, सरल और मनन करने योग्य हैं शान्ति जिनेश्वर हे परमेश्वर परमशान्त मुद्रा अभिराम पंचमचक्री शान्ति सिन्धु सोलहवें तीर्थंकर सुखधाम। निजानन्द में लीन शान्तिनाचक जग गुरु निश्चल निष्काम । श्री जिनदर्शन पूजन अर्चन यन्दन नितप्रति करूँ प्रणाम।। जल स्वभाव शीतल मलहारी, आत्यस्वभाव शुद्ध निर्मल जन्म-मरण मिट जाये प्रभु जब जागे निजस्वभाव का बल। परय शान्ति सूखदायक शान्तिविधायक शान्तिनाथ भगवान शाश्वत सख की मुझे प्रीति हो. श्री जिनंबर दो यह वरदान॥ अतिशय तीर्थ धूबोन श्री दि. जैन अतिशय क्षेत्र थबोन मध्यप्रदेश के ग्वालियर सम्भाग में गना जिलं के अन्तर्गत पार्वत्य प्रदेशों में अवस्थित है। यहाँ पर देवकृत अतिशयों को अनेक घटनाएं किंवदन्ती के रूप में प्रसिद्ध हैं अतएव यह अतिशय क्षेत्र कहा जाता है। (1) एक समय कतिपय उपद्रवियों ने इस क्षेत्र पर आक्रमण किया। वे जब मूर्तिभंजन करने के लिए उद्यत हुए तो उनको मूर्ति हो दिखाई नहीं पड़ी। तब व उपद्रवी मन्दिर को ही कुछ क्षति पहुँचाकर वापस चले गये। (2) मन्दिर नं. 15 में प्रतिष्टा समय भगवान आदिनाथ की 30 फीट ऊँची प्रतिमा को खड़ा करना जरूरी था। तभी सम्भव प्रयत्न किये गये परन्तु सफलता प्राप्त नहीं हुई। तब प्रतिष्ठाकारक आये और मूर्ति के समक्ष बैठकर भगवान की जैन पूला-काव्यों में तीर्थक्षेत्र :: 307
SR No.090200
Book TitleJain Pooja Kavya Ek Chintan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDayachandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages397
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devotion
File Size7 MB
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