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________________ चन्देरी क्षेत्र चन्दरी चीयांसी अधातू 21 तीक की अत्याधर्म और तीर्थंकरों के स्वाभाविक शरीर वर्ण से शोभित मूर्तियां, इनके कारण, मध्यप्रान्त के तीर्थ क्षेत्रों की श्रेणी में चन्देरी क्षेत्र एक विशिष्ट स्थान प्राप्त करता है। यहाँ के एक स्तम्भ लेख में नि. सं. 1950 अंकित होने से यह बड़ा मन्दिर इससे भी अधिक प्राचीन प्रतीत होता है। इसो मन्दिर के चौवीस शिखर शोभित 24 कोष्ठों में 24 तीर्थंकरों की पद्मासन मूर्तियाँ विराजमान हैं। चतुर्थकाल (सत्ययुग) में साक्षात अवतरित तीर्थंकरों के शरीर का जो स्वाभाविक अणं था, शास्त्र कथित उसी वर्ण के अनुसार इन मूर्तियों का वर्ण है अर्थात 16 मूर्तियाँ स्वर्णसम वर्णयुक्त, 2 श्वेतवर्ण, 2 श्यामवर्ण, 2 हरितवर्ण आर 2 लालवर्ण से विभूषित मूर्तियाँ हैं। इन रमणीय मूर्तियों का निर्माण जयपुर में हुआ था। कवि राजमल्ल पवैया ने वर्तमान 24 तीर्थंकरों के अचांकाव्य की रचना कर अपने पवित्र हृदय-सरोवर से भक्ति रस की धारा को प्रवाहित किया है। इस पूजा-काव्य में 18 पद्यों की रचना तीन प्रकार के छन्दों में निबद्ध हैं । कविता सरल, सरत एवं आध्यात्मिक है। उदाहरणार्थ कुछ पधों का उद्धरण भरत क्षेत्र की वर्तमान जिन चौबीसी को करूं नयन, धृषभादिक श्री बोरजिनेश्वर के पद पंकज में चन्दन । भक्तिभाव से नमस्कार कर विनय सहित करता पूजन भयत्तागर र पार करो प्रभु वही प्रार्थना है भगवन्॥ आन्मज्ञान वैभव के जल से यह भवनपा बुझाऊंगा. जमगहर चिदानन्द चिन्मय की ज्योति जगाऊँगा। वृपभादिक चौबीस जिनेश्वर के नित चरण पखारूँगा, परगन्यां से दृष्टि हटाकर अपनी ओर निहारूँगा। पार्श्वनाथ प्रभु के चरणाम्बुज दर्शनकर भवभार हरूँ, महावीर के पथ पर चलकर मैं भवसागर पार करूँ। चौबीसों तीर्थंकर प्रभु का भाव सहित गुणगान करूँ तुम समान निज पद पाने को, शुद्धातम का ध्यान धस्।' पपौरा क्षेत्र मध्यप्रदेश के टीकमगढ़ जिले में 'पपौरा' एक अतिशय क्षेत्र है। विशाल स्थल के पध्व सुरम्य वृक्षावली से शोभित एक परकोटा के अन्दर 108 गगनचुम्बी मन्दिर J. जैन पूनाजलि, पृ 1.48-150 जैन पूजा काव्यां पं तीर्थक्षेत्र :: आ?
SR No.090200
Book TitleJain Pooja Kavya Ek Chintan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDayachandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages397
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devotion
File Size7 MB
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