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________________ श्री विष्णुकुमार सुखदाय, लघु गुरु तन पायो, मुनिगण उपसर्ग नशाय, तब मोक्षपुरी पायो।। रचयिता कवि का भक्ति भाव (दोहा छन्द) जैसा ग्रन्थों में कहा, 'मंगल' रचिया पाठ। जाप सहितपूजा करे, सुख सम्पत्ति दातार॥ तपोभूमि यह सार जो, भक्तिभाव भर भायो। स्वर्गादिक दातार, 'मंगल' कर निधि पायो।' चौरासी (मथुरा) तीर्थक्षेत्र पूजा तीर्थक्षेत्र का परिचय-मथुरा प्राचीन काल से तीर्थ क्षेत्र के रूप में प्रसिद्ध है। प्राकृत निर्वाण-काण्ड में एक पथा इसका पना" है.. महुराए अहि छित्ते, वीर पास तइव वन्दामि । जम्बुमुर्णिदो वन्दे, णिव्युई पत्तोयि जम्बुवणगहणे॥ अर्थात्-मैं मथुरा के महावीर भगवान् और अहिच्छत्र के पार्श्वनाथ भगवान् की वन्दना करता हूँ तथा गहन जम्बूधन में निर्वाण प्राप्त करनेवाले जम्बुमुनिराज की वन्दना करता हूँ। चौरासी (मथुरा) क्षेत्र पूजा अथवा जम्बुस्वामी पूजा चौराती मथुरा क्षेत्र पूजा-काव्य की रचना के कवि अज्ञातनाम हैं। इस काव्य में कल बत्तीस पद्य चार प्रकार के छन्दों में निबद्ध हैं। अलंकारों की छटा से शान्तरस की धारा प्रवाहित होती है। उदाहरणार्थ पद्यों का दिग्दर्शन इस प्रकार है विद्युत माली देव चये जम्बू भये कामदेव अवतार अन्त केवलि भये। कलयुग करि पाख व्यंगनि शिववरी आओ आजो स्वामि भक्ति मम उर धरी।। ज्ञायक सम्यक शुद्ध ज्ञान केवल मय सोहै केवल दर्शन प्राप्ति अगरुलघु सूख में जोहै। इनमें नेक समाहि हर्ष भारी गुन तेरो अव्याबाध निवारि अर्घ दे चरणन रो॥ 1. स्ट् महावीर कीर्तन, पृ. 793-797 296 :: जैन पूजा काव्य : एक चिन्तन
SR No.090200
Book TitleJain Pooja Kavya Ek Chintan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDayachandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages397
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devotion
File Size7 MB
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