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________________ कुरुदेश भी था और हस्तिनापुर कुरुदेश की राजधानी थी, अतः यहाँ अनेक बार भगवान आदिनाथ का समवसरण आया था। उन्नीसवें तीर्थकर भगवान पल्लिनाथ का भी समवसरण यहाँ पर आया था। यहाँ तेईसवें तीर्थकर भगवान पार्श्वनाथ दीक्षा के बाद पधारे और बरदत्त के गृह पर पारणा की थी। उनका समवसरण भी यहाँ आया। यहाँ का राजा स्वयंभू, भगवान पार्श्वनाथ को केवलज्ञान (पूर्ण ज्ञान) होने पर अहिच्छत्र गया था और उनका उपदेश सुनकर उसने मुनि दीक्षा धारण की थी। वही भगवान का प्रथम गणधर हुआ। उसकी पुत्री प्रभावती भगवान पार्श्वनाथ के समवसरण में प्रधान आर्यिका हुई। पुराण शास्त्रों में भगवान महावीर के पावनविहार और समवसरण का जो प्रामाणिक विवरण मिलता है उनमें कुरुदेश या करुजांगल देश का भी वर्णन है। आचार्य जिनसेन ने हरिवंश पुराण में स्पष्ट कहा है कि कुरुप्रदेश में भगवान् महावीर की वाणी ने जन-जन के मानस में धार्मिकता का प्रसार कर दिया था। यह स्पष्ट प्रतीत होता है कि नाग लोग जैनधर्म के अनुयायी रहे हैं।' हस्तिनापुर क्षेत्र पूजा-काव्य क्षेत्रीय पूजा-काव्य इस हस्तिनापुर क्षेत्र पूजा-काव्य के रचयिता स्व. पं. मंगलसेन जी विशारद हैं। इस पूजा-काव्य में पैंतीस काव्य घार प्रकार के छन्दों में निबद्ध हैं। उदाहरणार्थ कुछ सरस काव्यों का दिग्दर्शन श्री हथनापुर सुविशाल, सब जन हितकारी लिया आदिनाथ आहार, है यह महिमा भारी। शान्ति कुन्थु अरनाथ, जनमे भवतारी पूजें हृदय सुख आन, मिल है आनन्द भारी॥ जल शीतल करत स्वभाव, कलशा भर लायो हमाचल से दी धार, आनन्द मन लायी। हधनापुर है सुखकार, सब जन मन भावा पूजत हो पाप कि हार, प्रभु चरणन आयो। नृप सोम श्रेयांस के द्वार, आये आदिनाथ स्वामी । दियो इक्षुरस का आहार, तब भक्ति भाव नामो। 1. भारत के दि. जैन तीर्थ, भाग-1 : वलभद्र जैन. पृ. 25 जैन पूजा-काच्चों में तीर्थक्षेत्र :: 245
SR No.090200
Book TitleJain Pooja Kavya Ek Chintan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDayachandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages397
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devotion
File Size7 MB
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