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________________ निकलते हैं।" तात्पर्य यह है कि दाँतों का दो बार जन्म होता है इसलिए उनको द्विज कहते हैं। इसी प्रकार पक्षी भी द्विज कहे जाते हैं, कारण कि ये एक बार माता के उदर से अण्डे के रूप में जन्म लेते हैं और दूसरी बार चे अण्डे से निकलते हैं इसीलिए पक्षी भी द्विज कहे जाते हैं। परन्तु जैस जन्म की प्रक्रिया से पक्षो तथा दाँत द्विज कहे जाते हैं वैसे मनुष्य द्विज नहीं कहे जा सकते हैं। मनुष्य को द्विज नैतिक एवं धार्मिक संस्कारों की दृष्टि से कहते हैं। वह प्रक्रिया इस प्रकार है-प्रथम बार मनुष्य माता के उदर से उत्पन्न होता है और दूसरी बार विद्यारम्भ आदि सोलह संस्कारों से मनुष्य का जीवन एक नया संस्कार युक्त और व्यवस्थित बन जाता है, जिससे जीवन भर वह सच्चरित्र, धार्मिक एवं शुद्ध कर्तव्यशील बन जाता है, इसी पवित्र सुसंस्कृत जीवन के परिवर्तन को ही मानव का दूसरा जन्म कहते हैं, यह मानव-जीवन की बड़ी विशेषता है। । यद्यपि संस्कृत भाषा के कोषकारों ने ब्राह्मणवर्ग को द्विज कहा है। यह कोष की दृष्टि से कहा है, परन्तु व्यापक मानवता की दृष्टि से विचार किया जाए तो जो मानव धार्मिक संस्कारों से सहित, शिक्षित, सच्चरित्र, नैतिक और कर्तव्यपरायण होता है वही द्विज कहा जाता है। वही श्रेष्ठ मानव वास्तव में मानव है चाहे वह ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र, हरिजन आदि कोई भी जाति का हो, किसी वर्ग या समाज और किसी भी देश का हो। वही मानव यथार्थ में सामाजिक, राष्ट्रीय एवं नागरिक कहा जाता है। संस्कार की परिभाषा (1) “मानवव्यक्तित्वस्य विकसनमेवसंस्कृतिः' मानव के व्यक्तित्व का विकास होना ही संस्कृति या संस्कार है। (2) "संस्कारो नाम स भवति बस्मिन् जाते पदार्थो भवति योग्यः कस्यचिदर्थस्य"। अर्थात् संस्कार वह कहा जाता है जिसके सम्पन्न होने पर किसी प्रयोजन के योग्य पदार्थ (वस्तु) हो जाता है। (3) "योग्यतां चादधानाः क्रियाः संस्काराः इत्युच्यन्ते" । अथात् योग्यता को विकसित करनेवाली क्रिया को संस्कार कहते हैं। (1) “संस्कारो हि नाम गुणाधानेन वा स्याद् दोषापनयनंन वा"। अर्थात जिसके द्वारा गुर्गों का विकास हा अथवा दोषों का निराकरण हो उसे संस्कार कहते हैं। 2400 : जैन पूजा-काव्य : एक चिन्तन
SR No.090200
Book TitleJain Pooja Kavya Ek Chintan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDayachandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages397
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devotion
File Size7 MB
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