SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 224
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ----- . .. .. .....-:- D - - - इस काव्य में इन्द्रवज्रा छन्द्र और रूपकालंकार की छटा से शान्तरस मानस को पवित्र करता है। इस काव्य में मनोहर मालिनी छन्द को पढ़ने से चित्त में प्रमोद को उत्पन्न करता है, रूपक और उपमा का विन्यास चमत्कार व्यक्त करता है। अर्थ में यह विशेषता है कि उपमेय ज्ञान एक है और उपमान अनेक हैं, इससे शान्तरस की वृद्धि होती है। सम्यग्ज्ञान के आठ अंग सम्यग्दर्शन के समान सम्यग्ज्ञान के भी आठ अंग होते हैं, जिनसे ज्ञान की पूर्णता, ज्ञान की शोभा और ज्ञान को वृद्धि होती है। वे अंग इस प्रकार होते हैं. (1) शब्दाचार-व्याकरण के अनुसार अक्षर, पद, मात्रा और वाक्य का प्रयलपूर्वक शुद्ध पठन-पाठन और उच्चारण करना। (2) अथांचार-पद और वाक्य के शुद्ध अर्थ का विचार करना। (8) उभयाचार-शब्द और अर्थ दोनों का विचार करना, पठन-पाठन करना। (4) कालाचार-उपद्रवरहितयोग्यकाल में सिद्धान्तग्रन्थों का स्वाध्याय करना या पठन-पाठन करना। उपद्रव, सूर्यचन्द्रग्रहण, तूफान, भूकम्प आदि के समय भक्तामरस्तात्र-कीर्तन-पूजन-जप-शान्ति हवन आदि का अनुष्ठान करना। 15) विनयावार-शुद्ध जल से हाथ-पैर धोकर शुद्ध स्थान में पर्वकासन बैठकर नमस्कारपूर्वक शास्त्रों का स्वाध्याय करना! (6) उपधानाचार-स्मरणपूर्वक स्वाध्याय करना अथवा पटित विषय को भूल नहीं जाना। (7) बहुमानाचार- सम्यग्ज्ञान, पुस्तक और अध्यापक का पूर्ण आदर करना। (8) अनिवावाचार-जिस गुरु एवं शास्त्र से ज्ञान का अर्जन हो उसको न छिपाना, प्रशंसा करना। ___ आचार्य अमृतचन्द्र ने 'पुरुषार्ध सिद्धयुपाय' ग्रन्थ में सम्यग्ज्ञान के उक्त आठ अंगों का वर्णन एक पद्य में किया है ग्रन्थार्थोभयपूर्ण काले विनयेन सोपधानं च __ बहुमानेनसमन्वितमनिह्नवं ज्ञानमाराध्यं ।' सारांश-सम्यग्ज्ञान की उपासना करने के लिये आठ अंग होते हैं...... (1) शब्दाचार, (2) अर्थाचार, (3) उभयाघार, (4) कालाचार, (5) विनयाचार, (6) उपधानाचार, (7) बहुमानाचार, (8) अनिवाचार । 1. पुरुषार्थ सिद्ध्युपाय-टीकाकार नाथूराम प्रेपी, प्रका...श्रीमद्राजचन्द्र आश्रम अगास, षष्ठ सं. पृ. 25 2285 :: जैन पूजा काञ्च : एक चिन्तन
SR No.090200
Book TitleJain Pooja Kavya Ek Chintan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDayachandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages397
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devotion
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy