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________________ - - . - -. ध्यानपथ से हृदयमन्दिर में बुलाता हूँ तुम्हें जाओ, विराजा, सान्नकट, कृतकृत्य अब करिए या उपगीताछन्द में रवित एवं रूपकालंकार स शोभित वह मध भक्तिरस को प्रवाहित करता है। पंचमेरुपूजनकाव्य कविवर घानतगय जी ने पंचमेरुपूजा की रचना कर अपना भक्ति भाव प्रदर्शित किया है। इसमें टाई बीप के पंचमरुपर्वतों के असी अकृत्रिम, विशाल जिनालयों का पूजन इक्कीस पथों में तथा अनेक छन्दों में किया गया है। उदाहरणार्ध जल अर्पण करने का पद्य शीतल मिष्ट सुचातमिलाय, जलती पूजों श्रीः जिनराय, महासुख होय, दंखे नाध परम सुख होय । पाँचो मेरु असी जिनयाम, सब प्रतिमा का करी प्रणाम, महासुख होय, देखें नाय परमनुख हाय।' इस पद्य में आंचलीवद्ध चौपाई छन्द्र का प्रयोग किया गया है जा पहन में ही मधुर दशांता हे। भक्ति रस का प्रवाह है। दशलक्षणधर्म पूजा-काव्य कविवर धानतराय जी ने ईसा की 18वीं शती में इस पूजा की रचना की है। इसमें शिवेध छन्दों में रचित, अठ्ठावन पद्यां में, उत्तम क्षमा आदि दश धर्मों का अर्चन, भावात्मकरूप से किया गया है। दशलक्षणव्रत की साधना के समय यह पूजन प्रमुख रूप से किया जाता है। कुष्ट प्रमुख पा उठाहरणायं प्रस्तुत है मान महाविषरूप, करहिं नीचर्गात जगल में। कोमल सुधा अनूप, सुखपावे प्राणी सदा॥ कपट न कीजे कोय, चोरन के पुर न बसे। सरल स्वभावी होय, ताके पर बहुसम्पदा।। कठिन पचन पत बोल, परनिन्दा अरु झूठ तज । साँच जबाहर खोल, सतवादो जग में सुखी। धरि हिरदं सन्तोष, करहु तपस्या देह सों। शौच सदा निरदोष, धरम बड़ो संसार में। 1. ज्ञानरीट पूजांजलि, पृ. 122 126 2. तथंच, पृ. 312-115 210 :: जैन पूजा-काश्च : एक चिन्तन
SR No.090200
Book TitleJain Pooja Kavya Ek Chintan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDayachandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages397
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devotion
File Size7 MB
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