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________________ जयमाला का तृतीय पद्य जय केवलभानुकलासदनं, भविकोक विकासन कंजवनं । जगजीत महारिपु मोहहरं, रजज्ञानदृगाम्बर चूरकर।। इस पद्य में तोटक छन्द्र का प्रयोग किया गया है जो कर्णप्रिय होने से भक्तिभाव की वृद्धि करता है। रूपक और अनुप्रास अलंकारों से भावपक्ष में सौन्दर्य की बृद्धि होती है। शान्तरस का यहाँ प्रभाव झलकता है। सरस्वती-पूजा कवियर पानतराय जी ने सरस्वती, जिनवाणी अथवा शास्त्र (आगम) की भक्ति करने के लिए सरस्वतो पूजा की रचना की है। इस पूजा में विविध छन्दों में विरचित बाईस पद्य हैं। इसमें यह भाव दर्शाया है कि तीर्थंकरों की दिव्यध्वाने भनागदेश) को सुनकर चला दानधारी गणभरों ने छुट्य में धारण किया, उनसे प्रतिगण-धरों ने ग्रहण किया, इसके बाद शिष्य-प्रशिष्य परम्परा द्वारा प्रसारित होकर विश्वकल्याण के लिए जनसाधारण तक प्राप्त हुआ। पूजन का एक पध जल अर्पण सम्बन्धी, उदाहरणार्थ प्रस्तुत है क्षीरोदधिगंगा. विमलतरंगा, सलिल अभंगा सखसंगा, मरि कंचनझारी, धार निकारो, तृषानिवारी हितचंगा। तीर्थंकर की धुनि, गणधर ने सुनि, अंग रचे चुनि ज्ञानमयो, सो जिनवरवानी, शिवसुखदानी, त्रिभुवनमानी पूज्यमयी।' इस पद्य में त्रिभंगी छन्द चित्त को आकर्षित करता है और अतिशयोक्ति और स्वभावोक्ति अलंकार शान्तरस व्यक्त कर रहे हैं। सोरठा ओंकार धुनि सार, द्वादशांग वाणी बिमल । नमों भक्ति उर धार, ज्ञान करे अड़ता हरै। परमात्म-पूजन काय पुष्म इन्दु ने भक्तिवश इस पूजन की रचना की है। इसमें विविध छन्दों में विरचित तेतीस पद्य हैं जो भावपूर्ण पढ़ने में मधुर एवं शुद्ध हिन्दी भाषा में प्रस्तुत हैं। उदाहरणार्थ प्रथम स्थापना का पद्य हे परम सौभाग्य प्रभुवर, आज यह अवसर मिला। आप से अनुभूति निज पाने हृदयशतदल खिला। 1. जिनेन्द्रपूजनर्माणमाला. पृ. 328-331 हिन्दी जैन पूजा-कायों में मुन्ट, गम, अलंकार : 20
SR No.090200
Book TitleJain Pooja Kavya Ek Chintan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDayachandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages397
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devotion
File Size7 MB
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