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________________ 1 I करें करम की निर्जरा, भवपींजरा विनाश | अजर अमर पद को लहँ, 'धानत' सुख की राश।। श्री शान्तिनाथ तीर्थंकर पूजा कविवर श्रीवृन्दावन जी ने ईसा की अठारहवीं शती में इस पूजा की रचना की है। आपकी कविता में भावपक्ष के साथ शब्द-सौन्दर्य भी महत्त्व रखता है। इस पूजा में विविध छन्दों में बद्ध तीस पद्यों के माध्यम से सोलहवें तीर्थंकर श्री शान्तिनाथ के गुणों का अचन किया गया है। उदाहरण स्थापना का प्रथम एस -- या भवकानन में चतुरानन, पापपनानन घेरि हमेरी आतम जान न मान न टानन, वान न होन दई सठ मेरी । ता मदमानन आपहि हो यह, छान न आन न आनन टेरी, आनगही शरनागत को, अब श्रीपतजी पतराखहु मेरी ॥ इस पद्य में मत्तगयन्द छन्द और यमक, रूपक, उपमा और परिकर अलंकारों की वर्षा से शान्तरस व्यक्त होता है। श्रीचिन्तामणि पार्श्वनाथ पूजा ईसा की उन्नीसवीं शती में कविवर बखतावर जी ने श्री पार्श्वनाथ पूजा- काव्य की रचना कर भक्ति भाव व्यक्त किया है। इस पूजा-काव्य में विविध छन्दों में निबद्ध पैंतीस पद्यों के माध्यम से श्री भगवान् पार्श्वनाथ के गुणों का स्तवन किया है। उदाहरणार्थ जल अर्पण करने का पथ प्रस्तुत किया जाता है क्षीर सोम के समान अम्बुसार लाइए हेमपात्र धार के तु आप को चढ़ाइए । पार्श्वनाथ देव सेव आप की करूँ सदा दीजिए निवास मोक्ष भूलिए नहीं कदा ॥" इस पद्य में चित्त को आकर्षित करनेवाला चामर छन्द की कान्ति हैं । उपमा अलंकार से अलंकृत है, जो शान्तरत के अनुकूल हैं I निर्वाणक्षेत्र पूजा कविवर द्यानतराय जी ने निर्वाणक्षेत्र पूजा-काव्य का सृजन किया है। इस काव्य में चौबीस तीर्थकरों के पूज्य निर्वाण क्षेत्रों (मोक्ष जाने के स्थानों) का वर्णन, 1. ज्ञानपीठ पूजांजलि, पृ. 369-574 2. जिनेन्द्रपूजन मणिमाला, पृ. 988-991 हिन्दी जैन पूजा काव्यों में छन्द, रस, अलंकार 211
SR No.090200
Book TitleJain Pooja Kavya Ek Chintan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDayachandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages397
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devotion
File Size7 MB
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