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________________ .---:---- . . -- -- -- दंव-शास्त्रगुरु-पूजा की रचना की है जिसका प्रथम स्थापना छन्द इस प्रकार है प्रथम देव अरहन्त सुश्रुत सिद्धान्त जू। गुरु निरग्रन्थ महन्त मुकतिपुर पन्थ जू। तीनरतन जगमाहि सु ये भवि भ्याइ तिनको भक्ति प्रसाद परमपद पाइए।' इस पद्य में रूपकालंकार, अडिल्लछन्द और शान्तरस की धारा प्रवाहित है। कवि 'पुष्पइन्दु' रचित विस्तृत देव, शास्त्र, गुरु पूजा का प्रथम स्थापना का पद्य चारघातिवाघात अनन्त चतुष्टय पाए दिव्यबोध से सर्वतत्त्व सिद्धान्त बताए। ताका लहि भवियोध मोक्षमारग प्रति धावे इम जिनेन्द्रवरदेव तास वच शास्त्र कहाए। तिन अनुगामो ग्रन्ध रच, त्रिविध सुगुरू परवीन । रे व घाम करित आ गया राम सुनि।' इस पद्य में घट्पद छन्द स्वभावोक्ति एवं रूपक अलंकार और शान्तरस है। इसी पूजन की देवजयमाला का छठा पद्य इस प्रकार है जय विश्वरमापति त्रिजगभूप, जय ब्रह्म विष्णु वध हर स्वरूप । जय सुमत सर्वलोचन जिनेन्द्र, जय शम्भु परम आनन्द कन्द।। इस पद में रूपक, उत्प्रेक्षा और स्वभावोक्ति अलंकारों से शान्नरस की धारा प्रवाहित होती हैं। इस पूजन में 47 पद्म विविध छन्दों में निबद्ध हैं। तीतरी देव-शास्त्र-गुरुपूजन श्री जुगलकिशोर एम.ए. द्वाय विरचित है जो वर्तमान में एक आध्यात्मिक कवि है। इस पूजन में कुल 15 पद्म विविध छन्दों में गुम्फित हैं। ये आधुनिक छन्द है। इस पूजन का प्रथम स्थापना का पय इस प्रकार ------ .. ::--- ------ : . केवल रवि किरणों से जिसका सम्पूर्ण प्रकाशित है अन्तर, उस श्री जिनवाणी में होता तत्त्वों का सुन्दरतम दर्शन। सदर्शन बोधचरणपथ पर अविरल जो चलते हैं मुनिगण, उन देव परम आगम गुरु को शतशत वन्दन शत शत बन्दन। इस पद्य में रूपक और स्वभाबोक्ति अलंकार से शान्तरस की धारा बहती है। इसी पूजन का नैवेद्य का पद अपना महत्त्व दर्शाता है 1. जिनेन्द्रपूजन मणिमाला, प्र. सं., पृ. 68-74 2. तथैव, पृ. 121-127 204 :: जैन पूजा-काव्य : एक चिन्तन
SR No.090200
Book TitleJain Pooja Kavya Ek Chintan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDayachandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages397
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devotion
File Size7 MB
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