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________________ चतुर्थ अध्याय हिन्दी जैन पूजा-काव्यों में छन्द, रस, अलंकार संस्कृत साहित्य में जैसे छन्द, रस और अलंकार के प्रयोग से भाषा में, माधुर्य और चमत्कार व्यक्त करता हैं तथा संस्कृत पूजा-काव्य में इन तीनों के प्रयोग भी पूर्व में दशाये गये हैं उसी प्रकार पूजा-काव्य की हिन्दी भाषा में भी छन्द, रस और अलंकारों के सुन्दर प्रयोग किये गये हैं। इससे जैन पूजा-काव्य में सरस, मधुरता और चमत्कारपूर्ण अर्थ या भाव प्रकाशित होता है। हिन्दी के जैन कवियों के भगवत्पूजा के पद्यों में मनोहर रस, छन्द एवं अलंकारों के प्रयोग नितरां भव्यतापूर्वक दृष्टिगोचर होते हैं इसलिए जैन पूजा-काव्य, सरस काव्यत्व के गौरव को प्राप्त हुए हैं। इनके पठन और श्रवण मात्र से हो मानव के मानस में आझाद और शान्ति का अनुभव होता है। जैन हिन्दी पूजा-कायों में संस्कृत एवं हिन्दी के मात्रिक तथा वर्णिक (गणछन्द) छन्दों का यथासम्भव व्यवहार हुआ है। इन काव्यों में छन्द, रस तथा अलंकारों के द्वारा शान्तरस का पोषण किया गया है। कारण कि इन भक्तिकायों में देव, आगम एवं गुरु की पूजा के माध्यम से आत्मा में शान्तभावों से आनन्दानुभव होता है। जैन भक्ति की शान्तिपरकता ___ "कवि बनारसीदास ने 'शान्तरस' को रसराज कहा है-'नवमी शान्तरसनिकोनायक' । उनका यह कथन जैनदर्शन के 'अहिंसा सिद्धान्त के अनुकूल ही है। जैन भक्तिकाव्य पूर्ण रूप से अहिंसक है।" पूजा-विधान में अभिषेक के पश्चात् स्वास्तवाचन करते हुए सबसे प्रथम सामान्य पूजा की जाती है। वह-'देव-शास्त्र-गुरु' पूजा के नाम से सर्वत्र प्रसिद्ध है। सबसे प्रथम हिन्दी में करियर श्री द्यानतराय जी ने अठारहवीं शती में श्री 1. डॉ. प्रेमसागर जैन : हिन्दी जैन भक्तिकाय्य और कांये. प्र.-भारतीय ज्ञानपीट, देहली. 1961, पृ. 29 हिन्दी जैन -काव्यों में उन्द, रस, अलंकार : 203
SR No.090200
Book TitleJain Pooja Kavya Ek Chintan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDayachandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages397
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devotion
File Size7 MB
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