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________________ अच्छमि णिच्यं परमट्ट सिद्धे सव्वट्ठ संपादय ससिद्धे || चन्दनं निर्वपामीति ।। 3. परंत-छोणी-सिपकारणेहि वरक्खएहिं सिपकारणेहिं। अच्चेमि णिच्चं परमट्ट सिद्धे सबढ़ संवादय सवसिद्धे || अक्षतं निर्वपामीति ॥ 4. पुप्फेहि दिव्वेहि सुवण्णएहिं कव्ये कईसेहि सुवण्णिएहि। अच्चेमि णिच्चं परमट्ठ सिद्धे सबढ़ संपादय सव्य सिद्धे || पुष्पं निर्वपामीति ॥ 5. बभेहि णाणा-सुरसप्पएहिं भब्वाण णाणादि रसप्पएहि । अच्चेमि णिच्चं परमट्ट सिद्धे सव्वट्ठ संपादय सथ्य सिद्धे || नैवेद्यं निर्वपामीति || 6. देदिव्य माणप्पह दीवएहिं संजूय आणं सिरिदेवएहिं। अच्चमि णिच्वं परमट्ट सिद्धे सव्वट्ठ संपादय सब्य सिद्धे ॥ दीपं निर्वपामीति ॥ 7. कालागरुन्भूय-सुहूबएहिं जीवाण पायाण सुहूवएहि। अच्चेमि णिच्च परमट्ठ सिद्धे सम्वट्ट संपादय सबसिद्धे || धूएं निर्वपामीति ॥ 8. अणग्यभूएहिं फलब्बएहिं भवस्स संदिण्ण फलव्यएहिं । अच्चमि णिच्चं परम सिद्ध सञ्चट्ट संपादय सव्व सिद्धे ॥ फलं निवपामीति || 9. णएण णाणेण य दसणेण तवेण उट्टेण य संजमेण। सिद्धे तिकाले सुविसुद्ध बुद्धे समग्घणयो सयले विसुद्धे ॥ अर्घ निर्वपासीति ॥ 200 :: जैन पूजा-काव्य : एक चिन्तन
SR No.090200
Book TitleJain Pooja Kavya Ek Chintan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDayachandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages397
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devotion
File Size7 MB
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