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प्राकृतभाषा में पूजा- काव्य रचयित्री - आर्यिका विशुद्धमति माता जी
स्थापना
सम्मं लसंतो, चारित्तरत्तो धम्मेणजुत्तो, इक्खा विरत्तो । सिरिविज्जासायर, चित्तम्मितिट्टो, नमामि णिच्चं जोएहिं सुद्धो ॥ ओं ह्रीं श्रीं 108 विद्यासागर महाराज । अत्र अवतर अवतर संवौषट् इति आवाहनम्
ओं ह्रीं ... अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः इति स्थापनम् । ओं ह्रीं...अत्र मम सम्निहितो भव भव वषट् इति सन्निधिकरणम् ।
कंचनकलशभरेहिं विमलसुगंधेहि वारि धारेहिं । अइमत्ति संपउत्तो, अच्चेमि सूरिणो णिच्चं । जलम् ॥
कोसीरमलयचन्दनकुंकुमपकेहि सुगंध गंधेहि । अहमत्ति संपत्तो अच्चमि सूरिणो णिच्वं ॥ चन्दनम् ॥
मुत्ताहल पुंजेहिं समवेहिं सुगंध मातेहिं । अइपत्ति संपउत्तो अच्चमि सूरिणो णिच्चं ॥ अक्षतम् ॥
कइयार कमल कुवलय णीणुप्यलकुमुद कुसुम मालेहिं । अमति संपतो अच्चेमि सूरिणो णिच्चं ॥ पुष्पम् ॥ बहुविह इवेज्जेर्हि लट्टू घेवर सुखज्ज फेणीहिं । अइमत्ति संपत्तो अच्चेमि सूरिणो णिच्चं ॥ नैवेद्यम् ॥ णिक्कज्जल कनुसेहिं पढिप्प करणेहिं रयणदीवेहिं । अहमत्ति संपत्ती अच्चेमि सूरिणो णिच्वं ॥ दीपम् ॥
चंदण कालागरुहिं णाणाविह अइ सुगंध धूवेहिं । अइमति संपतो अच्छेमि सूरिणो णिच्वं ॥ धूपम् ॥
दाडिम अम्म फलेहिं कदली नारंग दक्ख पक्केहिं । अइमति संपत्तो अच्चेमि सूरिणां णिच्चं ॥ फलम् ॥
जलगंध अक्खय सुपुप्फ चरुं पदीव धुवं फलं मिलिय कंचणथालभरियं । पायारबिंद अमतं मे अच्चणीनं असत्तभत्ति मणिबद्ध सहाय हेदु || अय् ॥
संस्कृत और प्राकृत जैन पूजा - काव्यों में छन्द... 200