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________________ जिसमें व्रतों का समापनपूर्वक उद्यापन होता हैं उसको 'उद्यापन पूजा-काव्य' कहते हैं। जिसमें विशेष पूजा की प्रक्रिया कथित हो उसको 'विधानकाव्य' कहते हैं। इनके अतिरिक्त प्रतिष्ठापाठ काव्य' प्राचीन अथवा अर्वाचीन आचार्यों या विद्वानों द्वारा विरचित हैं जिनमें मूर्तियों (प्रतिमाओं) की पंचकल्याणक प्रतिष्ठा, प्रतिष्ठापना अथवा प्राणप्रतिष्टा की प्रक्रिया का वर्णन है, ये प्रतिष्ठाकाव्य विशालकाय और संस्कृत भाषा में निबद्ध होते हैं। वर्तमान में पंचकल्याण प्रतिष्ठा इन ही प्रतिष्ठा कायों के आधार पर होती है। इन प्रतिष्ठाकाव्यों का, संस्कृत से हिन्दी भाषा में अनुवाद हो गया है। इस प्रतिष्टासार संग्रह ग्रन्थ में प्रतिष्ठा का लक्षण, मन्दिर-निर्माण विधि, भूमि-शुद्धि एवं शिलान्यास विधि, प्रतिमा निर्माण विधि, प्रतिष्ठा के शुभ मुहूर्त, मण्डपप्रतिष्ठा विधि, प्रतिष्ठा के सत्पात्र, नान्दीविधान, धर्मध्वज स्थापना, सपादलक्षजपविधि, विश्वशान्तियज्ञविधि, यागमण्डल का निर्माण, यागमण्डल में जिन बिम्ब स्थापना, यागमण्डल विधान की सामग्री, अंगशुद्धि, न्यास एवं सकलीकरण क्रिया, 250 गुणों का पूजन, स्वस्ति पाठ, अभिषेक विधि, शान्तिधारा विधान, सिद्धषिम्य प्रतिष्ठा, आचार्य, उपाध्याय, साधुबिम्ब प्रतिष्ठा, मण्डल प्रतिष्ठा और चरणलक्षण प्रतिष्ठा का पूर्ण वर्णन है। प्रतिष्ठासार संग्रह काव्य में, अनेक प्रतिष्ठाग्रन्थों के आवश्यक अंग तथा विधि लेकर, श्री ब्र. शीतल प्रसाद जी ने क्रमशः संग्रह किया है तथा हिन्दी में अनुवाद भी छन्दोबद्ध के रूप में किया है। इस प्रतिष्ठासार काव्य में पंचकल्याणकों की संक्षिप्त विधि इस प्रकार है-(1) गर्भकल्याणक प्रक्रिया-तीर्थंकर महापुरुषों की स्वर्ग में इन्द्रों की सभा में प्रश्नोत्तर, तीर्थकर, महत्त्व वर्णन, कुबेर को आदेश, 2. नगर में राजमहल की रचना, 3, माता-पिता की भक्ति, 4, रत्नवृष्टि होना, 5. पाता के गर्भ का दंक्यिों द्वारा शोधन, माता की भक्ति, 6. माता का सोलह स्वप्न देखना, 7. नित्य पूजा, शान्ति हवन, 8. राजसभा में स्वप्नों का फल, 9. इन्द्रों द्वारा गर्भ कल्याणक महोत्सव, 10. गर्भकल्याणकपूजन, 11. देवियों द्वारा माता की संबा, 12. माता तथा देवियों के मध्य 50-उपयोगी प्रश्नोत्तर । 2. तीर्थकरों का जन्मकल्याणक : ___ 1. तीर्थंकर जन्म महोत्सव, 2. इन्द्र तथा देवों द्वारा तीर्थकर बालक को सुमेरु पर्वत पर ले जाना, ४. सुमेरुपर्वत तथा क्षीरसमुद्र की रचना का वर्णन, 4. तीर्थंकर का सुमेरु पर जन्माभिषेक महोत्सव, 3. जन्मकल्याणक के समय चौयीस तीर्थकरों का पूजन, 6. राजभवन में तीर्थंकर प्रभु का पधारना, 7, तीर्थकर के मात-पिता के प्रमोद का वर्णन, 8. इन्द्र द्वारा ताण्डव नृत्य का प्रदर्शन, ५. तीथंकर के पूर्व भयों का प्रदर्शन, 10, तीर्थंकर के गृहस्थ जीवन का वर्णन, ।। तीर्थंकर बालक की दोलना 198 :. जैन पूजा-अाय : एक चिन्तन
SR No.090200
Book TitleJain Pooja Kavya Ek Chintan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDayachandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages397
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devotion
File Size7 MB
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