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________________ दशधर्मो का सष्ट द्रव्यों से पूजन करना दशलक्षणव्रत पूजा कही जाती है। श्री भट्टारक धर्मचन्द्र जी ने इस पूजा को संस्कृत में बनाया है। इसमें अनुष्टुपछन्द में एक प और वसन्ततिलका छन्द में 9 पद्य - कुल दस पद्य विरचित हैं। उदाहरणार्थ स्थापना का पद्य इस प्रकार है : उत्तमक्षान्तिकाद्यन्त ब्रह्मचर्यसुलक्षणम् । स्थापयेद्दशधा धर्ममुत्तमं जिनभाषितम् ॥ मन्त्र--ओं ह्रीं उत्तमक्षमादि दशलक्षणधर्म अत्र अवतर अवतर संवौषट् ओं ह्रीं ... अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः इति स्थापनम् । ओ हीं... अत्र मम सन्निहितो भव भव वषटू । जल अर्पण करने का पद्म प्रालेयशैलशुचिनिगं तचारुतो यैः शीतैः सुगन्धसहितैः मुनिचित्ततुल्यैः । सम्पूजयामि दशलक्षणधर्ममेक संसारतापहननाय शमादियुक्तम् ॥ वसन्ततिलका छन्द में रचित इस पद्य में उपमालंकार के व्यवहार से शान्तरस की धारा प्रवाहित होती है। संस्कृत पूजा के पश्चात् पृथक्-पृथक् दशधर्मो की दश जयमालाएँ हैं जिनका प्रथम पद्य संस्कृत में और अन्य पद्य प्राकृत में विरचित हैं। दश जयमालाओं के अन्त में एक समुच्चय जयमाला प्राकृत भाषा में है, इन प्राकृतभाषा की जयमालाओं के निर्माता श्री रइधूकविवर हैं। समुच्चय जयमाला के अन्त का पद्य इस प्रकार महत्वपूर्ण है : कोहाणलुचुक्कउ, होउ गुरुक्कड, जाइ रिसिंदहिं सिट्ठई । जगताई सुहंकरु, धम्ममहातरु, देश फलाई सुमिदं ॥ भावसौन्दर्य-क्रोधानल का त्या गकर महान् शुद्ध आत्मा बनो - ऐसा ऋषिवरों ने उपदेश दिया है। कल्याण करनेवाला यह धर्मरूपी महावृक्ष विश्व प्राणियों को पुण्यरूप मीठे फल प्रदान करता है। प्रतिष्ठासार संग्रह काव्य जिसमें एक महापुरुष का पूजन लिखा होता है उसको 'पूजा काव्य' कहते हैं। जिसमें अनेक महापुरुषों का पूजन वर्णित है उसको 'समुच्चय पूजा - काव्य' कहते हैं। 1. ज्ञानपीठ पूजांजलि, दशलक्षणपूजा, पृ. 199-229 । संस्कृत और प्राकृत जैन पूजा काव्यों में छन्द... 197
SR No.090200
Book TitleJain Pooja Kavya Ek Chintan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDayachandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages397
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devotion
File Size7 MB
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