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________________ -.... -- - - . . . चण्टा तोरण तारिकाजकलशेशछत्राष्टद्रव्यैः परैः श्रीभामण्डलधामरैः सुरचितैश्चन्द्रोपकरणादिभिः । काल्ये वरपुष्पजाप्यजपनः जैनः करोवर्चनाम् भव्यैः दानपरायणैः कृतदयः पुष्पांजलेः शुद्धये ॥ शार्दूलविक्रीडित छन्द विरचित इस पद्म में परिकर अलंकार के द्वारा भक्ति का मार्ग दर्शाया गया है जिससे आत्मा, हिंसा आदि पापों को दूरकर शान्ति के पथ में कुशलरीति से गमन कर सके। पुष्पांजलि पूजा के अन्त में श्रीरलचन्द्र द्वारा शुभाशीर्वाद : सर्वव्रताधिपं सारं, सर्वसौख्यकरं सताम् । पुष्पांजलिव्रतं पुष्याद, युष्माकं शाश्वती श्रियम् ॥ सारांश-सर्वव्रतों में श्रेष्ठ, कल्याणप्रद और सज्जनों को सुखकारी पुष्पांजलिव्रत पूजा आप सबको अविनाशी लक्ष्मी को प्रदान करें। इस पद्य में अनुष्टुपछन्द है, इस पूजन से मानव के प्रति शुभकामना व्यक्त की गयी है। इस प्रकार यह पूजा 89 श्लोकी में समाप्त होती है। -- ..- -------.--.. .-= ------- .- श्रीदशलक्षणपूजा विश्व में ।. आत्मा इंजीव), 2. पुद्गल, 3. धर्म, 4. अधर्म, 5. आकाश, 6. काल-ये छह द्रव्य प्रधान हैं। इनमें आत्मा परमार्थदृष्टि से स्वतन्त्र, अखण्ड परमशुद्ध निर्मल बैतन्य (ज्ञानदर्शन) स्वरूप प्रमुख द्रव्य है परन्तु लौकिक दृष्टि से ज्ञानावरण आदि द्रव्य कर्मों से, मिथ्याच-राग-द्वेष-मोह आदि भाव कर्मों से और शरीर आदि नोकमाँ से पराधीन अशुद्ध एवं विकार साहेत है। उस अशुद्ध आत्मा की शुद्धि के लिए आचार्यों ने धार्मिक मार्ग दर्शाया है। धर्म वह है जो विकारी आत्माओं को, जगत् के जन्म-मरण आदि अपार दुःखों से छुटाकर अक्षय अनन्त मोक्ष सुख को प्राप्त करा दे। "यः सत्त्वान् संसार दुःखतः निष्कास्य श्रेष्ट सुखं धरति सः धर्मः” यह व्याकरण की दृष्टि से शाब्दिक अर्थ धर्म का होता है। धर्म दस प्रकार का होता है : __ 1. उत्तमक्षमा श्रद्धापूर्वक क्रोध का त्याग), 2. मार्दव (अभिमान का त्याग), 3. आर्जव (माया : छल-कपट का त्याग), 4. शौच लोभ-तृष्णा का त्याग), 5. सत्य (मनसा वाचा कमणा सत्य का आवरण), 6. संयम (इन्द्रियों पर विजय प्राप्त करते हुए प्राणियों की सुरक्षा करना), 7. तप (इच्छा को रोककर व्रत-नियम का आचरण), B. त्याग (मोह का त्याग करते हुए आहार, उपकरण, औषध, जीवनसुरक्षा आदि दान करना, 9. आकिंचन्य धन-धान्य आदि वस्तुओं का भावपूर्वक त्याग करना), 10. ब्रह्मचर्य (शीलव्रत धारण करना)-ये दस धर्म हैं। इनकी साधना विधिपूर्वक करना-दशलक्षणव्रत कहा जाता है और इस व्रत की साधना में भावपूर्वक 196 :: जैन पूजा-काव्य : एक चिन्तन
SR No.090200
Book TitleJain Pooja Kavya Ek Chintan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDayachandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages397
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devotion
File Size7 MB
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