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________________ जयमाला का तीसरा काव्य जन्मकल्याणसम्भोहितामरबलं दर्शितानेकदेयांगनासुन्दरम् । प्रोल्लसत्केतुमालालयैः सुन्दरं, श्रीजिनागारबारं भजे भासुरम् ॥ इस पद्य में लक्ष्मीधरा छन्द भक्त को आनन्दित कर रहा है। उत्प्रेक्षालंकार के सहयोग से शान्त रस, शीतल मन्द पवन को प्रवाहित कर रहा है। इस पूजा की जयमाला का सातव काव्य विविधविषयभव्यं भव्यसंसारतारं शतमखशतपूज्यं प्राप्तसज्ज्ञानपारम् । विषयविषमदुष्टव्यालपक्षीशमीशु जिनवरनिकरं तं रत्नचन्द्रो भजेऽहम् || मालिनी जैसे मनोहर छन्द में रचित इस काव्य में परिकर, रूपक, उपमा अलंकारों की संमृष्टि से रात की मशीन याद कर रही हैं। मन्त्र का सार - ओं ह्रीं मन्दरमेरु के भद्रशाल-नन्दन- सौमनस-पाण्डुकवन की चार दिशाओं में स्थित जिनमन्दिरों के जिनबिम्बों के लिए मैं पूर्ण अर्ध समर्पण करता (5) विद्युन्पालीमेरु के मन्दिरों का पूजन इस पंचम विद्युन्माली नामक मेरुपर्वत पर भी चारों दिशाओं में चार वन और उनके चारों दिशाओं में चार-चार चैत्यालय इस प्रकार कुल सोलह चैत्यालय शोभित इन मन्दिरों का पूजन कुल अठारह पद्मों में एवं पंचप्रकार के छन्दों में किया गया है। सरस और मनोहर पद्यों की रचना की गयी है। प्रथम स्थापना हैं जिनान्संस्थापयाम्यत्रावाहनादिविधानतः । पुष्करे पश्चिमाशास्थान् विद्युन्मालिप्रवर्तिनः ॥ सारांश- - पुष्कर द्वीप के पश्चिम दिशा में स्थित विद्युन्माली मेरु सम्बन्धी मन्दिरस्थ जिनप्रतिमाओं की मैं आवाहन आदि विधि से स्थापना करता हूँ। अक्षत अर्पण करने का पद्य इन्दुरश्मिहारयष्टि हैमभासभासितैः अक्षतैरखण्डितैः सुवासितैः मनः प्रियैः । जैनजन्ममज्जनगंभसः प्लवातिपावनं पंचमं सुमन्दिरं महाम्यहं शिवप्रदम् ॥ उपमा तथा उत्प्रेक्षा अलंकारों से शान्तरस को पुष्टि हो रही है। इस पूजा की जयमाला का अन्तिम सातवाँ पद्य - संस्कृत और प्राकृत जैन पूजा काव्यों में छन्द... 195
SR No.090200
Book TitleJain Pooja Kavya Ek Chintan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDayachandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages397
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devotion
File Size7 MB
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