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________________ गतनिखिलबिलापाः कान्तिदीप्ता जिनेन्द्राः अपगतघनमोहाः सन्तु सिद्ध्यै जिनेन्द्राः ॥ इस मालिनी छन्द से शोभित काव्य मे रूपक तथा स्वभावाक्ति अलकारों की छटा से शान्त रस का अनुभव होता है। (1) विशेष मन्त्र-जयमाला के अन्तिम अर्घ अर्पण का औं ही सुदर्शन मेरुसम्बन्धि-भद्रशाल-नन्दन-सौमनस-पाण्डुक वनस्थित पूर्व दक्षिणपश्चिमोत्तरसम्बन्धि जिन चैत्यालयस्थजिनबिम्बेभ्यः पूर्णा निर्वपामीति स्वाहा। मन्त्र का हिन्दी सार ओं ही सुदर्शनमेरुसम्बन्धि भद्रशाल-नन्दन-सौमनस और पाण्डुकवन के पूर्व-दक्षिण-पश्चिम और उत्तरदिशा के जिन चैत्यालयों में स्थित जिन प्रतिमाओं के लिए मैं पूणर्घ समर्पित करता हूँ । (2) विजयमेरुपर्वत के मन्दिरों का पूजन इस पूजन में सत्रह पद्य हैं जो चार छन्दों में रचित हैं और अनेक अलंकारों से विभूषित हैं। अनुष्टुपूछन्द में स्थापना करने का पद्य : जिनान् संस्थापयाम्यत्रावाहमादिविधानतः । धातकीखण्डपूर्वाशामेरोः विजयवर्तिनः ॥ सारांश-दूसरे धातकी खण्डद्वीप की पूर्व दिशा में स्थित विजयमेरु सम्बन्धी जिनेन्द्रों की आवाहन आदि विधान से मैं स्थापना करता हूँ। ओं ह्रीं विजयमेरुसम्बन्धि जिनप्रतिमासमूह! अत्र अवतर अवतर संवौषट्। अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः । अब मम सन्निहितो भव भव वषट्-इति स्थापनम् । जल अर्पण करने का पध सुतोयैः सुतीर्थोद्भवः बीतदोषैः, सुगांगेय गारनालास्यसंगैः । द्वितीयं सुमेरु शुभं धातकीस्थं, यजे रत्नबिम्बोज्ज्वल रत्नचन्द्रः ॥ मन्त्र-ओं ह्रीं विजयमेरुसम्बन्धि भद्रशाल-नन्दन-सौमनस-पाण्डुकवन स्थित-पूर्वदक्षिण-पश्चिमोत्तरस्थ जिन चैत्यालयस्थजिनबिम्बेभ्यो जन्मजरामृत्युविनाशनाय जालं निर्वपामोति स्वाहा। इस काव्य में भुजंगप्रयातछन्द द्वारा भक्तिरस का पान कराया गया है। जयमाला का प्रथम पद्य सकलकलिलमुक्ताः सर्वसम्पत्तियुक्ताः गणधरगणसे व्याः कर्मपंकप्रणष्टाः । प्रहतमदनमानास्त्यक्तमिथ्यात्वपाशाः ललितानेखिलभावास्लेजिनेन्द्रा जयन्तु । संस्कृत और प्राकृत जैन पूजा-काव्यों में उन्... :: 13::,
SR No.090200
Book TitleJain Pooja Kavya Ek Chintan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDayachandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages397
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devotion
File Size7 MB
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