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________________ "" 1 वित्तं कांचनपर्वतेषु विधिना स्नानार्चनं देवतां राज्यं सौख्यमनेकधा वरतपो मोक्षं च सौख्यास्पदम् ॥ इस पूजा में कुल चालीस पद्य विविध छन्दों में निबद्ध हैं जिनसे भक्तिरस की धारा बहती हैं। इस पूजा का मन्त्र ओं ह्रीं दर्शनविशुद्धि आदिषोडशकारणेभ्यो नमः | शास्त्रों में पुष्पांजलि व्रत का विधान है, पौराणिक कथा के आधार पर यह प्रसिद्ध है कि आर्यखण्ड के मृणालपुर नामक नगर में रहनेवाले श्रुतकीर्ति चित्र की पुत्री प्रभावती ने एक दिगम्बर मुनिराज के उपदेश से पुष्पांजलि व्रत का पालन किया था जिसके प्रभाव से वह प्रभावती सोलहवें स्वर्ग में देव उत्पन्न हुई। इस पुष्पांजलि व्रत में पंचमेरुपर्वतों की स्थापना कर चौबीस तीर्थकरों की पूजा करने का नियम है। अढ़ाई द्वीप (मनुष्य लोक) में विभिन्न स्थानों में प्राकृतिक पंच मेरुपर्वत हैं, एक-एक मेरुपर्वत पर सोलह-सोलह अकृत्रिम जिन-मन्दिर शोभायमान हैं। उन अस्सी जिनालयों का पूजन इस व्रत में किया जाता है, इसलिए इस पूजा को पुष्पांजलि पूजा अथवा पंचमेरुपूजा कहते हैं। इस व्रत की सतत साधना करने के पश्चात् इसका उद्यापन किया जाता है। इस पूजन के महत्व को लक्ष्यकर भट्टारक रत्नचन्द्र जी द्वारा संस्कृत में इस पूजा की २० की गयी है। इनका समय वि. सं. 1600 कहा गया है। इस पूजा में पंचमेरुपर्वतों के मन्दिरों का पृथक्-पृथक् पूजन किया गया है। प्रथम सुदर्शन मेरुपर्वत के सोलह मन्दिरों का पूजन अठारह पद्यों में पाँच प्रकार के छन्दों में रचा गया है । उदाहरणार्थ स्थापना करने का प्रथम पद्य इस प्रकार है । जिनान संस्थापयाम्यत्रावाहनादिविधानतः । सुदर्शनमवान् पुष्पांजलिव्रत विशुद्धये ॥ सारांश - पुष्पांजलिव्रत की शुद्धि के लिए स्थापना आदि विधिपूर्वक सुदर्शन मेरूपरस्थित सोलह मन्दिरों को स्थापना करते हैं। मन्त्र - ओं ह्रीं सुदर्शनभेरूसम्बन्धिषोडशचैत्यालयस्थजिनप्रतिमासमूह अत्र अवतर अवतर संवौषट् । ओं ह्रीं...अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः । ओं ह्रीं ... अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् । जयमाला का अन्तिम पद्य इति हततमघनपापा रचितफलोद्यप्राप्तसुज्ञानधाराः । नम्रसमरेन्द्राः । 1. ज्ञानपीठ पूजांजलि, पृ. 134-1971 1५५ जैन पूजा- काव्य एक चिन्तन ::
SR No.090200
Book TitleJain Pooja Kavya Ek Chintan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDayachandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages397
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devotion
File Size7 MB
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