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________________ अन्तिम जलधारा प्रतिमा पर दें। चौदहवाँ श्लोक एवं मन्त्र पढ़कर अधंद्रव्य का समर्पण करे। पन्द्रहवाँ श्लोक पढ़कर थाली में पुष्प-समर्पण करे। इसके पश्चात् पास में एक थाली रखकर उसमें यन्त्र (गुणों का रेखाचित्र) स्थापित करें, उस यन्त्र पर, विश्व शान्ति की कामना से, शान्ति भारा पाठ पढ़ते हए गलश से सस्तृएड धा" देना चाहिए, जनता को करबद्ध खड़े होकर विश्वशान्ति की भावना करनी चाहिए, इस समय वाद्यध्वनि, करध्वनि, जयध्वनि तथा घण्टाध्वनि नहीं होनी चाहिए। शान्तिधारा के पूर्ण होने पर अर्ध अर्पण करना तथा जयध्वनि करना। सोलहवाँ श्लोक तथा मन्त्र पढ़कर स्वच्छ श्वेत वस्त्र से श्रीप्रतिमा का मार्जन करना, यन्त्र का पार्जन करना। सत्रहयाँ श्लोक पढ़कर श्रीप्रतिमा तथा यन्त्र को सिंहासनों पर पृथक्-पृथक् स्थापित करना चाहिए। अठारहवाँ श्लोक एवं मन्त्र पढ़कर श्रीप्रतिमा तथा यन्त्र को अर्घसमर्पण करना चाहिए और घृतदीपक से आरती करना, उन्नीसवाँ तथा बीसवाँ श्लोक पढ़कर अभिषेकजल (गन्धोदक) को मस्तक पर लगाना चाहिए। इक्कीसवाँ श्लोक पढ़कर थाली में पुष्प छोड़े। ___ ग्यारहवें श्लोकपाठ के पश्चात् प्रथम जलधारा के समय जो मन्त्र पढ़ा जाता है, वह इस प्रकार है : ओं नमः सिद्धेभ्यः । अथ मध्यलोकेऽस्मिन् आये जम्बूद्वीपे भरतक्षेत्रे आर्यखण्डे भारतवर्षे मध्यप्रदेशे सागर मण्डलान्तर्गत सागरनगरे श्रीबाहुबलि दि. जैनमन्दिरे, 2510, श्रीवीरनिर्वाणसंवत्सरे, 2041 विक्रमाब्दे, ज्येष्ठमासे शुक्ल पक्षे, पूर्णमासीतिथौ बुधवासरे प्रातःकाले शुभमुहूर्ते, श्रीमतः 'भगवतः श्रीऋषभादि महावीरान्ततीर्थकरपरमदेवान्, पूजक श्रोतृगणतापसार्विकाश्रावक श्राविकाणां सकलकर्मक्षयार्थ शुद्धजलेन अभिषिंचे ॥ इस मन्त्र के पढ़ने में आराधक को द्रव्य-क्षेत्र-काल-भाव के विषय में तथा अभिषेक के लक्ष्य में अच्छी तरह जानकारी प्राप्त करनी पड़ती है, इसके बिना मन्त्र अशुद्ध हो जाता है। इस मन्त्र के ज्ञान से दैनिक व्यवहार में भी दक्षता प्राप्त होती । उक्त संस्कृत अभिषेक में रूपक, उपमा, उत्प्रेक्षा, स्वभावोक्ति अलंकारों से शोभित, वसन्ततिलका शिखरिणी आदि छन्दों में निबद्ध रम्य श्लोकों के द्वारा शान्तरस एवं वात्सल्यभाव की धारा प्रवाहित होती है। यह प्रथम संस्कृत अभिषेक पाठ की रूपरेखा है। अब श्री अभयनन्दी आचार्य द्वारा सम्पादित द्वितीय संस्कृत अभिषेक पाठ की रूपरेखा प्रकाशित की जाती है-सर्वप्रथम इस पाठ का मंगलाचरण इस प्रकार है : 158 :: जैन पूजा-काव्य : एक चिन्तन
SR No.090200
Book TitleJain Pooja Kavya Ek Chintan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDayachandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages397
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devotion
File Size7 MB
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