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________________ श्रीमज्जिनेन्द्रमभिवन्द्यजगत्त्रयेशं, स्याद्वादनायकमनन्तचतुष्टयार्हम् । श्रीमूलसंघसुदृशां सुकृतैकहेतुः, जैनेन्द्रयज्ञविधिरेष मवाभ्यधायि ॥' इस इलोक को पढ़कर जिनदेव के आगे पुष्पांजलि क्षेपण करें। दूसरे श्लोक को पढ़कर माला, सूत्र, यज्ञोपवीत आदि को धारण करें । तीसरे श्लोक को पढ़कर मस्तक आदि नवस्थानों पर चन्दन का तिलक करें । चतुर्थ श्लोक को पढ़कर नागसन्तर्पणपूर्वक भूमि का सिंचन करें। पंचम श्लोक पढ़कर सिंहासन को स्थापित कर उसका प्रक्षालन करें। छठवें श्लोक को पढ़कर सिंहासन पर कैंसर से श्रीवर्ण लिखें। सातवें श्लोक को पढ़कर दशमन्त्रों का शुद्ध उच्चारण करते हुए, पूर्व आदि दश दिशाओं में स्थापित दशदिक्पालों को अर्घ्य प्रदान करें। आठवें श्लोक को पढ़कर, पात्र में रखे हुए दीप आदि से जिनदेव की आरती करें । नौवें श्लोक को पढ़कर सिंहासन पर प्रतिमा को स्थापित कर पुष्पादि क्षेपण करे । दशवें श्लोक को पढ़कर सिंहासन के चारों कोणों पर सुसज्जित चार कलश रखें। ग्यारहवें श्लोक को पढ़कर अर्हन्तदेव के लिए अर्ध्य समर्पण करे। बारहवें श्लोक को पढ़ने के पश्चात् पूर्वोक्त "ओं नमः सिद्धेभ्यः । अथमध्यलोके " इत्यादि मन्त्र कहते हुए जिन प्रतिमा पर कलश से जलधारा छोड़ें तथा मन्त्र को कहते हुए अर्घ्य का अर्पण करें। तेरहवें श्लोक को पढ़ते हुए प्रतिमा पर घृत की धारा दें और अध्यं चढ़ाएँ । चौदहवें श्लोक को पढ़कर जिन प्रतिमा पर शुद्ध दुग्ध की धारा दें और अर्ध्य चढ़ाएँ । पन्द्रहवें श्लोक को पढ़कर जिनदेव पर शुद्ध दही की धारा दें, एवं अर्ध्य चढ़ाएँ । सोलहवें श्लोक को पढ़ते हुए अर्हन्तदेव पर शुद्ध इक्षुरस की धारा छोड़े, अर्घ्य चढ़ाएँ सत्रहवें श्लोक को पढ़कर प्रतिमा पर सर्वौषधि जल की धारा छोड़ें, एवं अर्घ्य अर्पण करें। अठारहवें श्लोक को पढ़कर प्रतिमा पर सुगन्ध जल की धारा छोड़ें, अच्यं समर्पण करे। 1. ज्ञानपीट पूजांजति सम्पादक पं. फूलचन्द्र सिं. शा., डॉ. उपाध्ये, प्रका. भारतीय ज्ञानपीठ, नयी दिल्ली, तृ. सं. पृष्ठ 17 से 25 तक। संस्कृत और प्राकृत जैन पूजा काव्यों में छन्द... 159
SR No.090200
Book TitleJain Pooja Kavya Ek Chintan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDayachandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages397
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devotion
File Size7 MB
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