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________________ असारयामी आरती ओ. जय अन्तरयामी, स्वामी जय अन्तरयामी। दुखहारी सुखकारी, त्रिभुवन के स्वामी। ओं, जय अ. (देक) नाथ निरंजन सब दुख भंजन, सन्तन आधारा। पापनिकन्दन भविजन तारन, सम्पति दातारा । ओं, जय.॥ ज्ञान प्रकाशी शिव पुरवासी, अविनाशी अविकार। अलख अगोचर शिवमय, शिवरमणी भरताराओ. जय।। 'न्यामत' गुणगावे पाप नशावे, चरणन शिर नावे। पुन पुन अरजसुनाचे, कमला शिक्लक्ष्मी पावे।।ओ.जय॥ इस आरती में कुल पाँच छन्द हैं जिनमें सरस तीन छन्दों का उद्धरण दिया गया है शेष छन्द भी शान्ति प्रदायक हैं। महावीरस्वामी आरती इस आरती में आठ छन्द हैं। इसमें भगवान महावीर स्वामी का गुणस्तवन किया गया है, उदाहरणार्थ कुछ सरस छन्दों का उद्धरण ओ. जय सन्मति देवा, स्वामी जय सन्मति देवा। वीर महा अतिवीर वीरप्रभु, वर्धमान देवा ॥टेका त्रिशलाउर अवतार लिया प्रभु, सुर नर हर्षाये। पन्द्रह मास रतन कुण्डलपुर, धनपति वर्षाये।ओं जय॥ शुक्ल त्रयोदशी चैत्रमास की, आनन्द करतारी। राय सिद्धारथ घर जन्मोत्सव, ठाट रचे भारी।ओं जय।। श्री पार्श्वनाथ आरती इस आरती में तीन नव्य तर्जवाले छन्दों द्वारा भगवान पार्श्वनाथ की भक्ति दर्शायी गयी है जिसके द्वारा शान्ति एवं श्रद्धा की जागृति होती है, जिसमें मानव जीवन की नश्वरता दिखलाकर श्री पार्श्वनाथ के पुनीत चरणों में लीन होने की प्रेरणा दी गयी है, आरती का उद्धरण देखिए। 1. उस पुस्तक, पृ. 1OUL. 2. बृहतमहावीर कीर्तन, पृ. In02. 148:: जैन पूजा-काव्य : एक चिन्तन
SR No.090200
Book TitleJain Pooja Kavya Ek Chintan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDayachandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages397
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devotion
File Size7 MB
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