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________________ भक्त बेकरार है, आनन्द अपार है आ जा प्रभु पारश तेरा जय जय कार है। मंगल आरती लेकर स्वामी, आया तेरे द्वार जी, आया तेरे द्वार जी | दर्शन देना पारश प्रभु जी, होवे आतम ज्ञान जी, होवे आतम ज्ञान जी।। अध्यात्म आरती ( निश्चय आरती ) आरती दो प्रकार की होती है ( 1 ) निश्चय आरती, ( 2 ) व्यवहार आरती । निश्चय आरती में मात्र आत्मगुणों का चिन्तन रहता है, इसमें बाह्यवस्तु दीपक आदि की आवश्यकता अनिवार्य रूप से नहीं होती है । व्यवहार आरती में शुद्धलक्ष्य के साथ बाह्य वातावरण की भी आवश्यकता होती है। इस आरती में आत्मा प्रभु को लक्ष्य बनाकर स्तुति की गयी है। इसके रचयिता श्री दीपचन्द्र कवि हैं, इसमें सात छन्द आत्मगुणों की प्रशंसा में ही निबद्ध हैं- सम्पूर्ण आरती का दर्शन कीजिए इह विधि आरती करीं प्रभु तेरी, अमल अबाधित निजगण केरी। टेक अचल अखण्ड अतुल अविनाशी, लोकालीक सकल परकाशी ॥ इह. ज्ञानदर्श सुख बल गुणधारी, परमातम अविकल अविकारी ॥ इह. क्रोध आदि रागादिक तेरे, जन्म जरा मृतु कर्म न मेरे ॥ इह. अवपु अबन्ध करण सुखनाशी अभय रानात शिवनवासी। यह रूप न रस, न भेष न कोई, चिन्मूरति प्रभु तुम ही होई ॥ इह. अलख अनादि अनन्त अंरोगी सिद्ध विशुद्ध आत्तम भोगी ॥ इह. गुण अनन्त किमि वचन बतावें, 'दीपचन्द्र' भवि भावना भावे ॥ इह. इस आरती में प्रसिद्ध हिन्दी छन्द में शान्तरस की धारा बहती हैं विषय विस्तार के कारण सम्पूर्ण आरती साहित्य नहीं लिखा जा सकता अतः उसकी सूची यहाँ पर दी जा रही है क्रम आरती का नाम श्री सिद्धचक्र की आरती अन्तर्यामी आरती 1. 2. 3. 4. 5. 6. आरती महावीर स्वामी महावीर स्वामी की आरती आरती महावीर स्वामी आरती पंचकल्याणक 1. बृहतुनहावीर कीर्तन, गृ. 1012. रचयिता पं. मक्खनलाल जी कवि न्यामत सिंह शिवराम कवि कवि द्यानतराय अज्ञात कवि धानतराय जैन पूजा - काव्य के विविध रूप : 169
SR No.090200
Book TitleJain Pooja Kavya Ek Chintan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDayachandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages397
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devotion
File Size7 MB
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