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१५वीं, १६वी, १वीं और १८वौं शादी के प्राचार्य, भट्टारक और कवि
५२३ चरित्र की रचना सं० १५११ में की है। उसमें अपनी पहली रचना 'श्रीपाल चरित' की रचना का उल्लेख किया है। बताधर्मघर १६वीं शताब्दो के पूर्वाधं के विद्वान सुनिश्चित हैं।
कवि को दो रचनाएं उपलब्ध है-श्रीपाल चरित और नागकुमार चरित ।
श्रीपाल चरित-में कवि ने पूर्ववर्ती पुराणों का अवलोकन करके सिद्ध चक्र के माहात्म्य का कयन किया है। सो माहात्म्य से श्रीपाल और उसके सात सौ साथियों का फष्ट रोग दूर हो गया था। उनकी पत्नी मैना सन्दरो में सिद्धचक्र व्रत का अनुष्ठान किया था। इस ग्रन्थ की रचना कवि ने गोलाराडान्वयी श्रावक खेमल की प्रेरणासेकी धी। प्रशस्ति में खेमल के परिवार का परिचय दिया है। खेमल जिन चरणों का भक्त, दानी, रूप-शील सम्पन्न मौर परोपकारी था।
श्री सर्वज्ञपवारविवयुगले भक्तिविकासाम्वृधिः वानचतुष्टये भ निरता लक्ष्मीसुधायुग्म च। रूपं शीलगतं परोपकारकरणे व्यापारनिष्ठं वपुः
साधो खेमलसंशको मतमवं काले कलौ दृश्यते ॥२६॥ ग्रन्थ चार सर्गात्मक है । ग्रन्यकर्ता कवि मोर रचना प्रेरक धावक खेमल सम्भवतः एक ही स्थान चन्दवार के पास 'दत्त पल्ली' नाम के नगर के निवासी थे।
नाराकमार चरित-इसमें कवि ने पूर्वस्त्रानुसारतः' पूर्वसूत्रानुसार कामदेव नागकमार का चरित किया
गकमार ने अपने जीवन में जो-जो कार्य किये, प्रतादि का अनुष्ठान कर पुण्य संचय किया और परिणामतः दिशाधिका लाभ तथा भोगोपभोग की जो महती सामग्री मिली उसका उपभोग करते हए नागकमारने उनले मना-पध में विचरण किया है । उसका जीवन बड़ा ही पावन रहा है। उसे क्षण स्थायी भोगों की चका.
प्रामक्ति उत्पन्न करने में समर्थ रही है। वह प्रात्म-जयी वीर था, जो अपनी साधना में अपने ही प्रयत्न द्वारा कर्मबन्धन की अनादि परतन्त्रता से सदा के लिये उन्मुक्ति प्राप्त की है।
ना में प्रेरक-इस ग्रन्थ को कवि ने यदुवंशी लंबकंचुक (लमेचू) गोत्री साह नह की प्रेरणा से बनाया जलपाट या चन्द्रवाड नगर के समीप दत्तपल्ली नामक नगर के निवासी थे। उस समय उस नगर में
क चातरवर्ण के लोग निवास करते थे। नल्ह साह के पिता का नाम धनेश्वर या बाहाण, क्षत्री, वैश्य और शूद्र नामक चातुरक्षणं के लोग निवास करते थे। नल साह के ति
जिनदास के चार पुत्र थे-शिवपाल, लि, जयपाल और धनपाल । धनपाल की पत्नी का नाम लक्षणश्री पाशियां धनपाल चौहानवंशी राजा माधवचन्द्र का मंत्री था'।धनपाल के दो पुत्र थे- ज्येष्ठ मल्ल उदयसिंह । दाना हो जिनभाक्तिक और राजा माधवचन्द्र द्वारा प्रतिष्ठित थे। कसोर यशोमती । साह नल्ह राज्यमान्य थे। उनके चार पुत्रथ तेजपाल, विनयपाल,चन्दनसिंह और नरमिता नल्हू साहू का प्ररणा स' साह की प्रेरणा से कवि धर्मधर ने कवि पुष्पदन्त के नागकुमार चरित्र को देख कर इसकी रचना की है। कबि ने इस ग्रन्थ की रचना वि० सं० १५११ में श्रावणशुक्ला पूणिमा सोमवार के दिन की है।
ध्यतीते विक्रमादित्ये हज वत-शशिनामनि । धावणे शुक्लपक्षे त्र पूणिमा चन्द्रवासरे ॥५३ मभूत्समाप्तिग्नन्यस्य जयंभरसुतस्य हि। नूनं नागकुमारस्य कामरूपस्य भूपतेः ॥५४
पंहरिचन्द्र मूलसंघ बलात्कारगण सरस्वती गच्छ के भट्टारक पयनन्दि, शुभचन्द्र, जिनचन्द्र, सिंहकीति, मुनि खेमचन्द्र,
है । साहू नल्हू चन्द्रपाट या चन्द्रवाड नगर के समी
१. तस्य मन्त्रिपवे श्रीमद्यबुवधा समुद्भवः ।
लंबकंचुक सद्गोत्रे धनेशो जिनदासजः ।।१२
-नागकुमारचरित प्रशस्ति, जयपुर तेरापंथी मंदिर प्रति ।