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१५वीं १६वीं १७वी और १८वीं शताब्दी के आचार्य, भट्टारक और कवि
कवि की दूसरी रचना मल्लिनाथ 'काव्य' है। जिसमें १६वं तीर्थंकर मल्लिनाथ का जीवन परिचय दिया हुआा है । झामेर शास्त्र भण्डार की यह प्रति त्रुटित है, इसके प्रादि के तीन पत्र और अन्तिम पत्र भी उपलब्ध नहीं है । इस ग्रन्थ की रचना पृथ्वीराज (संसारचन्द) चौहान के राज्य में हुए हैं। इसीलिए कवि ने 'चिरणंद देसु पुसहमि पारेसु वाक्य में उनका उल्लेख किया है। पृथ्वीराज भोजराज चौहान करहल का पुत्र था, इसकी माता का नाम नाइक देवी था । पार्श्वनाथ चरित के कर्ता असवाल (सं० १४७९ ) ने उसके राज्य को सं० १४७१ की घटना का उल्लेख किया है, उक्त १४७१ में भोजराज के मंत्रो यदुवंशी अमरसिंह ने रत्नममी जिन बिम्ब को प्रतिष्ठा की थी। कवि हल्ल के मल्लिनाथ काव्य के कर्ता की लोणासाहु ने प्रशंसा की थी। इससे उक्त मल्लिनाथ काव्य सं० १४७१ या १४७० की रचना है । अतः कवि का समय सं० १४५० से १४७५ है ।
कवि की तीसरी कृति 'श्रीपाल चरित्र' है । यह भी अपभ्रंश भाषा में रचा गया । इसकी ६० पत्रात्मक प्रति दि० जैन मंदिर दीवानजी कामा के शास्त्र भण्डार में सुरक्षित है। ( राजस्थान ग्रन्थ सूची भाग ५ पृ० ३६३ ) कवि प्रसवाल
कवि का वंश गोलाड या गोलालारे था । यह पंडित लक्ष्मण का पुत्र था । कवि कहां का निवासी था। कवि ने इसका उल्लेख नहीं किया । पर कवि ने मूल संघ बलात्कारगण के भ० प्रभाचन्द्र, पद्मनन्दी, शुभचन्द्र और धर्मचन्द्र का उल्लेख किया है। अतः कवि इन्हीं की प्राम्नाय का था। संवत् १४६ में कवि के पुत्र विद्याधर ने भ अमरकीर्ति के 'षट् कर्मोपदेश' की प्रति लिखी थी । यह ग्रन्थ नागौर के शास्त्र भंडार में सुरक्षित है ।
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कवि की एक मात्र कृति पाश्वनाथचरित्र है। जिसमें १३ संधियां हैं । जिनमें २३ वें तीर्थंकर पार्श्वनाथ की जीवन गाथा दी हुई है। ग्रन्थ में पद्धडिया की बहुलता है । ग्रन्य की भाषा उस समय की है जब हिन्दी भाषा अपना विकास और प्रतिष्ठा प्राप्त कर रही थी। भाषा मुहावरेदार है। रचना सामान्य है।
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यह ग्रन्थ कुशात देश में स्थित 'करहल" नगर निवासी साहू सोर्णिम के अनुरोध से बनाया था, जो यदुवंश में उत्पन्न हुए । उस समय करहल में चौहान वंशी राजाओं का राज्य था। इस ग्रन्थ की रचना वि० सं० १४७६ भाद्रपद कृष्णा एकादशी को बनाकर समाप्त की गई थी । ग्रन्य निर्माण में कवि को एक वर्ष का समय लगा था । ग्रन्थ निर्माण के समय करहल में चौहान वंशी राजाभोजराज के पुत्र संसारचन्द्र ( पृथ्वीसिंह) का राज्य था। इनकी माता का नाम नाइक्कदेवी था और यदुवंशी अमरसिंह भोजराज के मंत्री थे, जो जैन धर्म के संपालक थे । इनके चार भाई और भी थे, जिनके नाम करमसिंह, समरसिंह, नक्षत्रसिंह और लक्ष्मणसिंह थे । श्रमसिंह की धर्मपत्नी का नाम कमल श्री था। उससे तीन पुत्र उत्पन्न हुए थे । नन्दन, सोपिंग और लोणा साहू । इनमें लोणा साहू जिनयात्रा, प्रतिष्ठा आदि प्रशस्त कार्यों में द्रव्य का विनियम करते थे और अनेक विधान – उद्यापनादि कार्य कराते थे । उन्होंने मल्लिनाथ चरित के कर्ता कवि 'हल्ल' की प्रशंसा की थी | लोणा साहू के अनुरोध मे कवि में राजा असवाल ने पार्श्वनाथ चरित की रचना उनके ज्येष्ठ भ्राता सोगिंग के लिए की थी। प्रशस्ति में सं० १४७१ भोजराज के राज्य में सम्पन्न होने वाले प्रतिष्ठोत्सव का भी उल्लेख किया है, जिसमें रत्नमयो जिन विम्ब की प्रतिष्ठा सानन्द सम्पन्न हुई थी ।
कवि की अन्य क्या रचना है अन्वेषण करना श्रावश्यक है । कवि का समय १५ वीं शताब्दी का तृतीय
चरण है ।
१. मी पंडिय लखण सुय गुलंग, गुलराड दसि यपड अहं ।
जैन ग्रन्थ प्रशस्ति० भा० २ पृ० १२६
२. गोलाकान्वये वाकुवंशे श्री मूलस ३. कुशाल देश सूरसेन देश के उत्तर में
पंडित असवाल सुत विद्याधर नामा लिलेखि।" (नागौर शास्त्र सरकार प्रति ) बसा हुआ था और उसकी राजधानी शौरी पुर बी, जिसे यादवों ने बसाया था । जरासंघ के विरोध के कारण यादवों को इस प्रदेश को छोड़कर द्वारिका को अपनी राजधानी बनानी पड़ी थी।
४. करहुल इटावा से १३ मील की दूरी पर जमुना नदी के तट पर बसा हुआ है, वहां चौहान वंशी राजाओं का राज्य रहा है। यहां शिवरबन्द चार जैन मन्दिर है । और अच्छा शास्त्रकार भी हैं।